♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥शब्दों का भार...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुम मेरे मौन को समझने लगो, मेरे शब्दों का भार कम होगा।
प्रेम जब आत्मा से होगा तो, बाद मरकर भी न ख़तम होगा।
श्रंखला दीप की जला लेंगे, मन में उलझन न कोई तम होगा,
हाँ मगर टूट जायेंगी लड़ियाँ, प्रेम का भाव जब छदम होगा।
मन के सम्बन्ध में न टूटन हो, भावनाओं का रूप खिल जाये!
जब अँधेरे दुखों के घेरें तो, प्रेम की जगती धूप मिल जाये।
ओस की बूंद को उठालें चलो, मन का सूखा लिबास नम होगा!
तुम मेरे मौन को समझने लगो, मेरे शब्दों का भार कम होगा …
छोड़कर साथ न चला करते, और न खुद का ही भला करते।
प्रेम होता है जिनके मध्य यहाँ, वो नहीं झूठ से छला करते।
त्याग के रंग में समाहित हों, दीपमालाओं से जला करते,
हाँ मगर जिनको प्रेम है ही नहीं, घाव पे अम्ल वो मला करते।
प्रेम का नाम तो सभी लें पर, प्रेम का मर्म सब नहीं जानें।
हाथ बाहर से तो मिला लें पर, आत्मा का मिलन नहीं मानें।
"देव" जो प्रेम से छुओगे तो, तन शिलाओं का भी नरम होगा।
तुम मेरे मौन को समझने लगो, मेरे शब्दों का भार कम होगा।"
......................चेतन रामकिशन "देव"….......................
दिनांक-२१.०९.२०१४ "