Thursday 7 August 2014

♥♥खून पसीना..♥♥

♥♥♥♥♥खून पसीना..♥♥♥♥♥
खून पसीना बहुत बहाया!
तब जाकर के जीना आया!
बुरे वक़्त में सब बदले थे,
किसी ने मरहम नहीं लगाया!

सब उपहास उड़ाने वाले,
नहीं दर्द की बातें जानें!
भूख प्यास से व्याकुल दिन और,
नहीं किसी की रातें जानें!

ठोकर खाकर गिरा कभी जब,
किसी ने मुझको नहीं उठाया!
बुरे वक़्त में सब बदले थे,
किसी ने मरहम नहीं लगाया...

साथ किसे के न देने से,
हाँ तन्हाई तड़पाती है!
मगर आंसुओं की ये धारा,
हमको जीना सिखलाती है!

देख हमारे इस साहस को,
ढ़लता उपवन भी मुस्काया!
बुरे वक़्त में सब बदले थे,
किसी ने मरहम नहीं लगाया...

अपने गम से मिला तजुर्बा ,
और पीड़ा ने सोच सुधारी !
"देव" होंसला जगा लिया तो,
नहीं सांस लगती है भारी!

सीख गया काँटों पे चलना,
नहीं आग से मैं घबराया!
बुरे वक़्त में सब बदले थे,
किसी ने मरहम नहीं लगाया! "

......चेतन रामकिशन "देव"…..
दिनांक-०८ .०८. २०१४