Friday 26 September 2014

♥♥जिद...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥जिद...♥♥♥♥♥♥
जिद पे इतनी उतर रहे हैं वो। 
प्यार करके मुकर रहे हैं वो। 

जिनको उड़ने का इल्म बख़्शा था,
उनके ही पर क़तर रहे हैं वो।  

मेरे दिल को ही कह रहे पत्थर,
हद से अपनी गुजर रहे हैं वो। 

बेगुनाही ने मुझको थाम लिया,
सूखे पत्तों से झर रहे हैं वो। 

जिनकी छाँव में धूप रोकी थी,
उनमे तेज़ाब भर रहे हैं वो। 

कितने मज़लूमों को था मार दिया,
मौत से अपनी डर रहे हैं वो। 

"देव" खाली ही हाथ जाना है,
लूट क्यों इतनी कर रहे हैं वो। "

.......चेतन रामकिशन "देव"…....
दिनांक-२७.०९.२०१४