♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥तंगहाल..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
देश का निर्धन तंगहाल है, दुखी है बेरोजगार!
इनकी आँखों से बहती है, हर क्षण अश्रुधार!
खुले गगन के नीचे सोना, इनकी है मजबूरी,
इनका हित अनदेखा करती, देश की हर सरकार!
भूख प्यास से देखो इनके, जर्जर हुए शरीर!
बड़ी ही धुंधली देखो, इनके जीवन की तस्वीर!
अपनी मांग उठाते हैं तो पड़ती इन पर मार!
देश का निर्धन तंगहाल है, दुखी है बेरोजगार...
पढ़ लिखकर कुछ बन जाएँ, स्वप्न हुए सब चूर!
देश का हर एक निर्धन वासी , हुआ बड़ा मजबूर!
इनके दुख और बेचैनी को, मिलता नहीं करार,
इनके ज़ख्म भी बिना दवा के, बन जाते नासूर!
न भाए फिर इनके मन को, लेखन और किताब!
इनकी आंखे भूले से भी, फिर नहीं देखती ख्वाब!
जीर्ण-शीर्ण हो जाता, इनके जीवन का आधार!
देश का निर्धन तंगहाल है, दुखी है बेरोजगार...
जाने कब इनके जीवन का, बदलेगा ये ढंग!
जाने कब इनके जीवन में, भरेगा कोई रंग!
"देव" न जाने कब तक, इनको मिलेगा यूँ ही दर्द,
न जाने कब खुशी की, इनके मन में बजे तरंग!
दुख में जीवन यापन करते, देश के वंचित लोग!
इस पर भी नेता करते हैं, इनका बस उपयोग!
जाने कब इनके जीवन में, आये सुखद बहार!
देश का निर्धन तंगहाल है, दुखी है बेरोजगार!"
"देश- के निर्धन और बेरोजगार, वास्तव में मर मर के जिंदगी जीने को विवश हैं! देश की सरकारें, इनके हित के लिए भले ही अनेकों योजनायें चल रही हों, किन्तु भ्रष्ट अफसरशाही और नेताओं/ प्रतिनिधियों की लूटमार की नीति, उस पात्र तक लाभ नहीं पहुँचने देती, जो उन योजनाओं/रोजगार का पात्र है! "
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-०६.१०.२०१२
रचना संपादन-सम्मानित सीमा गुप्ता जी!
सर्वाधिकार सुरक्षित!
मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!