Saturday, 28 February 2015

♥♥♥पिता...♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥पिता...♥♥♥♥♥♥♥♥
पिता जो होते, हम खुश होते,
बिना पिता के बहुत अधूरे।
सलाह पिता जी की मिलती तो,
हो जाते कुछ सपने पूरे।

थाम के ऊँगली, उनकी हम भी,
जीवन पथ पर आगे बढ़ते। 
जब उनका साहस मिलता तो,
हम भी ऊँची डाली चढ़ते। 

हमे दर्द हो तो माँ के संग,
पिता हमारे नींद से जगते। 
पिता हमारी ओर देखते,
हम उनके सीने से लगते। 

पिता जो होते तो माँ की भी,
आँख नहीं पथराई रहतीं। 
वो भी होती अगर सुहागिन,
स्याह कोई छाई न रहती। 

लालन पालन को हम सबके,
काम पे जाते रोज सवेरे। 
सलाह पिता जी की मिलती तो,
हो जाते कुछ सपने पूरे...

पांच तत्व में मिली देह जब,
पिता की तो हम घंटो रोये। 
माँ की ऑंखें हुईं लबालब,
भाई बहन पल को न सोये। 

बरसो बीते गये पिता को,
दूर मगर वो कब होते हैं। 
माँ होती ममता की देवी,
और पिता जी रब होते हैं। 

काश वक़्त ये करे वापसी,
और पिता जी घर आ जायें। 
भैया, बहनें, माँ और हम सब,
उनके सीने से लग जायें।  

"देव" साथ में होली खिलती,
हो जाते हम पीले, भूरे। 
सलाह पिता जी की मिलती तो,
हो जाते कुछ सपने पूरे। "

.......चेतन रामकिशन "देव"........
दिनांक-०१.०३.२०१५

♥♥♥मिटटी की देह...♥♥♥



♥♥♥♥♥♥♥♥♥मिटटी की देह...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
शांत है अब देह मानो, कोई स्पंदन नहीं है। 
देह मिटटी की हुयी है, अब गति का तन नहीं है। 
एक ही क्षण में मिली, परमात्मा से आत्मा,
शव जलाने चल पड़े सब, शेष अब जीवन नहीं है। 

है नियम जाने का तो फिर, वेदना इतनी क्यों होती। 
क्यों किसी को याद करके, आँख ये दिन रात रोती। 

मैं जो पूछूं तो कहें सब, ये सही प्रश्न नहीं है। 
शांत है अब देह मानो, कोई स्पंदन नहीं है... 

कल तलक आँगन में अपने, स्वर हमारे बोलते थे। 
प्राण वायु मिल रही थी, हम जो द्वारा खोलते थे। 
"देव" पर झपकी पलक तो, थम गये हैं दृश्य सारे,
दूर होना चाहते सब, साथ में जो डोलते थे। 

खुद को अब खुद ही की बातें, क्यों पराई लग रहीं हैं।  
लौटकर आये न बेशक, आँख कितनी जग रही है। 

जिंदगी मिलती नहीं फिर, उसके ऊपर धन नही है। 
शांत है अब देह मानो, कोई स्पंदन नहीं है। "

................चेतन रामकिशन "देव"................
दिनांक-२८.०२.२०१५