Monday 4 January 2016

♥ लफ्ज़ ♥

♥♥♥♥♥♥♥ लफ्ज़ ♥♥♥♥♥♥♥♥
लिखे थे लफ्ज़ दिल से पर, अहम उनका नहीं पिघला। 
वो शायद चाँद और मैं एक, पत्थर भी नहीं निकला।

महीनों, साल, दिन में ही, वो भूला नाम को मेरा,
मेरा दिल कौनसी मिट्टी का, जो ये अब भी नहीं बदला।

वो दुनिया के लिये तस्वीर पर तस्वीर रखते हैं,
क्यों मेरे वास्ते खिड़की का भी, पर्दा नहीं बदला।

चुभाये ख़ार मेरे दिल को पर, दे दी उन्हें माफ़ी,
रंगे न हाथ उनके सोचकर, खूं भी नहीं निकला। "
........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-०५.०१.२०१६ 
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