Wednesday, 4 April 2018

♥♥अनुराग ...♥♥

♥♥अनुराग ...♥♥
मौन पढ़ा न तुमने मेरा,
अभिव्यक्ति थी अनुराग की।
तुम पर प्राण करूं न्योछावर,
यही सोच थी मेरे त्याग की।
तेरे अश्रु पी लेने को,
हर क्षण मेरा कंठ खुला था,
शब्द भाव को युग्मित करके,
रची कविता प्रेम राग की।

ये नहीं कहता के मैं ही बस ,
श्रेष्ठ समर्पण का नायक हुं।
किन्तु इतना बोध है मुझको,
मैं सच का प्रतिपालक हुं।
प्रेम भाव के इस परिपथ में,
मिथ्या कहना मुझे न भाये,
मैंने उसको सौंप दिया मन,
वो छोड़े या साथ निभाये।

मैं शीतलता का वाहक हुं,
ज्वलनशीलता नहीं आग की।
शब्द भाव को युग्मित करके,
रची कविता प्रेम राग की....

कितने स्वप्न हुए रेखांकित,
अति निकटता का अवसर था।
सागर का खारा पानी भी,
लगता था कितना मधुकर था।
अनुभूति के दीप जले थे,
रोम रोम मन का उज्जवल था।
किन्तु सच का बोध हुआ तो,
सिद्ध हुआ वो केवल छल था।

मैंने माना प्रेम को श्रद्धा,
उसने युक्ति गुना भाग की।
शब्द भाव को युग्मित करके,
रची कविता प्रेम राग की।

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक- ०४.०४.२०१८
(सर्वाधिकार सुरक्षित, मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित)