Friday 12 December 2014

♥♥♥डाका...♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥डाका...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मुफ़लिस के हक़ पे अब पड़ता डाका है। 
चूल्हा ठंडा, उसके घर में फाका है।  

अपनी छत उधड़ी, पर क़र्ज़ परायों को,
कहो तरक्की का ये कैसा खाका है। 

दफ्तर में बेख़ौफ़ लुटेरे लूट रहे,
मानो अफसर हर मुफ़लिस का आका है। 

सूखे बच्चे रोग कुपोषण का फैला,
पुष्टाहार भले घर घर में आँका है। 

काला धन आखिर कैसे परदेश गया,
मुल्क में यूँ तो कदम कदम पर नाका है। 

अरबों, खरबों हड़प के भी आज़ाद फिरें,
कानूनों से बाल से इनका बांका है। 

"देव " नज़र ये रस्ता तकते लाल हुईं,
पर किसने मुफ़लिस के घर में झाँका है।  "

...........चेतन रामकिशन "देव"……......
दिनांक--१३.१२.२०१४