Wednesday 8 October 2014

♥प्रेम-अनुरोध...♥



♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रेम-अनुरोध...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
नयन नींद से रिक्त हो गए, स्मृति में छवि तुम्हारी। 
स्वांस भी आती कठिनाई से, गतिशीलता हुयी है भारी।
स्पंदन भी मौन हो गया, और स्वप्न भी टूट गए हैं,
प्रेम समर्पित कर दो जो तुम, रहूँ तुम्हारा मैं आभारी। 

सखी तुम्हारे प्रेम को पाकर, प्राण हमारे जीवन पायें!
मेरे पतझड़ से जीवन में, फूल गुलाबों के खिल जायें। 

बिना प्रेम के जल से सूखी, मेरे जीवन की ये क्यारी। 
नयन नींद से रिक्त हो गए, स्मृति में छवि तुम्हारी। 

सखी तुम्हारा संग मिलने से, हर्ष की छाया हो जायेगी। 
और तुम्हारे प्रेम की वर्षा, मेरे अश्रु धो जायेगी। 
तुम और मैं सब साथ चलेंगे, आशाओं की जोत जलेगी,
तिमिर की बेला इस ज्योति से, क्षण भर में ही खो जायेगी। 

सखी है तुमसे करुण निवेदन, मेरी मन की हालत जानो। 
मैं मिथ्या के वचन न बोलूं, मेरे शब्दों को पहचानो। 

मेरी मन की अनुभूति की, जमा पूंजी सब हुयी तुम्हारी। 
नयन नींद से रिक्त हो गए, स्मृति में छवि तुम्हारी। 

भाव निवेदन जितने थे, सब तुमको अर्पित कर डाले। 
मैंने अपनी पीड़ाओं के, तुमको देखो दिए हवाले। 
"देव" तुम्हारा निर्णय मेरे पक्ष में आये तो अच्छा है,
नहीं तो अपने मुख जड़ लूंगा, मौन व्रत के मोटे ताले। 

अनुरोधों की सीमा होती, देरी से ये मिट जाते हैं। 
और सरस भावों के धागे, खंड खंड में बँट जाते हैं।   

चलते चलते अनुरोधों से, मैं तुमपे होता बलिहारी। 
नयन नींद से रिक्त हो गए, स्मृति में छवि तुम्हारी। "

.....................चेतन रामकिशन "देव"….................
दिनांक-०९ .१०.२०१४

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प्रेम- एक ऐसी विवशता की दशा जब देता है तो अनुरोधों और निवेदनों के वहिस्कृत/ख़ारिज होने की आशंका बहुत पीड़ा देती है, जिस सम्बंधित पक्ष के लिए भाव पनपते हैं, उसके प्रति आसक्त होने की अवस्था में हमारा मन अनेकों निवेदनों/अनुरोधों को समर्पित करता है, मन को आशा होती है कि उसे उसकी चाह मिल जाये, परन्तु सहनशीलता की एक अवस्था भी होती है, उसके निगमन के अंतर्गत सही समय पर अनुरोधों की अपेक्षा पूरी न होना सामने वाले के लिए कष्टकारी हो जाता है, तो आइये चिंतन करें। 

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सर्वाधिकार सुरक्षित,  मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित। "