♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥मन की दुल्हन...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुमसे हर एहसास जुड़ा है, तुम अनुभूति हो जीवन की!
भले ही फेरे नहीं हुए पर, तुम दुल्हन हो अंतर्मन की!
तुम्हें देखना अच्छा लगता, तुम्हें सोचना दिल को भाए,
तुम सीपी हो, तुम मोती हो, तुम ज्योति हो मेरे मन की!
तुम दुल्हन के परिधानों में, जब भी सपनों में आती हो!
मेरे तन को, मेरे मन को, तुम खुश्बू से महकाती हो!
तुम स्वागत की अधिकारिणी, तुम माला हो अभिनन्दन की!
तुमसे हर एहसास जुड़ा है, तुम अनुभूति हो जीवन की..
नया सफर है हम दोनों का, प्रीत परस्पर सिखलानी है!
मन से मन विवाह हो गया, ये गठबंधन रूहानी है!
तुम दुल्हन के रूप में देखो, किसी परी जैसी लगती हो,
सखी तुम्हारी आंखें सुन्दर, और चेहरा भी नूरानी है!
सखी चाँद सी है सुन्दर है तू, तेरा यौवन मनोहारी है!
सखी तुम्हारे ऊपर मेरा, सारा जीवन बलिहारी है!
मुझमें छाया वसी तुम्हारी, तुम सूरत मेरे दर्पण की!
तुमसे हर एहसास जुड़ा है, तुम अनुभूति हो जीवन की..
मैं अपने हाथों से तेरा, सखी मेरी सिंगार करूँगा!
एहसासों में तुम्हें वसाकर, हर पल तुमसे प्यार करूँगा!
"देव" तुम्हारे हाथों पर मैं, प्यार भरी मेहँदी
रचकर के,
एहसासों के सिंदूरी रंगों से, तेरी मांग भरूँगा!
मेरी दुल्हन अनुपम हो तुम, मेरे तन की जान तुम्हीं हो!
तुम्हीं मेरी कार्य कुशलता, जीवन का सम्मान तुम्हीं हो!
सोने, चाँदी से भी बढ़कर, तुम पूंजी मेरे जीवन की!
तुमसे हर एहसास जुड़ा है, तुम अनुभूति हो जीवन की!"
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प्रेम-जिससे होता है, वो एहसासों के संसार में, कभी दुल्हन बनकर संगिनी जैसी लगती है तो कभी शिक्षक बनकर, मार्ग दर्शक! कभी मित्र बनकर सहयोगी तो कभी प्राकृतिक नजारों जैसी लगती है! सचमुच जहाँ प्रेम होता है वहां, हर एहसास, सम्बंधित पक्ष के लिए उमड़ता है!"
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-०५.०५.२०१३
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