♥♥सर्दी वाली परी ...♥♥
सर्दी वाली परी मौन है।
धूप का भी न पता कौन है।
कंटक मेरे जीवन पथ पर,
खिले फूल और लता कौन है।
विस्मय बोध हुआ है मन को,
देखके उनके परिवर्तन को,
क्षण भंगुर सा टूट गया मैं,
चोट लगी है अंतर्मन को।
पीड़ा कम हो जो विरह की,
लेप, छाल वो बता कौन है।
कंटक मेरे जीवन पथ पर,
खिले फूल और लता कौन है...
नीले फूल, कली गुमसुम है।
बहुत विवशता का मौसम है।
नयनों में लाली के मेघा ,
पलकों का आंचल भी नम है।
तुमको प्रेम किया यदि मैंने,
तो बोलो के खता कौन है।
कंटक मेरे जीवन पथ पर,
खिले फूल और लता कौन है।"
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-09.01.2018
(मेरी यह रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित, सर्वाधिकार सुरक्षित )
सर्दी वाली परी मौन है।
धूप का भी न पता कौन है।
कंटक मेरे जीवन पथ पर,
खिले फूल और लता कौन है।
विस्मय बोध हुआ है मन को,
देखके उनके परिवर्तन को,
क्षण भंगुर सा टूट गया मैं,
चोट लगी है अंतर्मन को।
पीड़ा कम हो जो विरह की,
लेप, छाल वो बता कौन है।
कंटक मेरे जीवन पथ पर,
खिले फूल और लता कौन है...
नीले फूल, कली गुमसुम है।
बहुत विवशता का मौसम है।
नयनों में लाली के मेघा ,
पलकों का आंचल भी नम है।
तुमको प्रेम किया यदि मैंने,
तो बोलो के खता कौन है।
कंटक मेरे जीवन पथ पर,
खिले फूल और लता कौन है।"
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-09.01.2018
(मेरी यह रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित, सर्वाधिकार सुरक्षित )