Sunday 2 June 2013

♥♥शब्दों की मधुरम वाणी...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥शब्दों की मधुरम वाणी...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
शब्दों की मधुरम वाणी का, एक उज्जवल प्रकाश तुम्हीं हो!
मेरे प्रेम के पंछी मन का, सखी सुनो आवास तुम्हीं हो!

मेरे मन के भावों का भी, अलंकरण तुमसे होता है,
इस जीवन में हंसी खुशी का, सखी सुनो आभास तुम्हीं हो!

ये सच है के इस जग में, अब प्रेम का वो स्थान नहीं है!
किन्तु फिर भी बिना प्रेम के, मानव का कल्याण नहीं है!

तुम्ही मिलन की अनुभूति हो, और विरह वनवास तुम्हीं हो!
शब्दों की मधुरम वाणी का, एक उज्जवल प्रकाश तुम्हीं हो....

सखी लाज तेरा गहना है, छुईमुई जैसी लगती हो!
सखी हमारी प्रतीक्षा में, रात रात भर तुम जगती हो!
सखी तुम्हारे प्रेम ने मेरे, सूने मन में रंग भरे हैं,
अपने कोमल हाथों पर तुम, प्रेम भरी मेहँदी रचती हो!

तुमको जबसे प्रेम किया है, मानवता मन में आई है!
सखी तुम्हारे प्रेम ने देखो, मेरी दुनिया महकाई है!

सखी तुम्हीं सावन की बारिश, सतरंगी आकाश तुम्हीं हो!
शब्दों की मधुरम वाणी का, एक उज्जवल प्रकाश तुम्हीं हो...

सखी तुम्हारे प्रेम में देखो, किंचित भी अभिमान नहीं है!
बिना प्रेम के इस जीवन में, मानव का सम्मान नहीं है!
"देव" जहाँ में प्रेम की युक्ति, करती है मिट्टी को सोना, 
इस दुनिया में प्रेम से बढ़कर, कोई मीठा गान नहीं है!

सखी तुम्हारी प्रीत ने मुझको, जिस दिन से भी गले लगाया!
तब से मेरे जीवन पथ में, खुशी का हर पल झोंका आया! 

सखी तुम्हीं शीतल जलधारा और हरियाली घास तुम्हीं हो!
शब्दों की मधुरम वाणी का, एक उज्जवल प्रकाश तुम्हीं हो!"


"
प्रेम-जिससे भी होता है, वो मानव, प्रेम करने वाले व्यक्तित्व में सब कुछ निहित कर देता है, वो कभी उसे प्रकृति की शीतल जल-धारा से जोड़ता है तो कभी हरियाली से, कभी चद्रमा के मुख से तो कभी कोयल की बोली से! सचमुच, प्रेम एक ऐसा विषय है, जिसके लिए सभी की अपनी अपनी परिभाषा हैं, मगर हर परिभाषा का उद्देश्य कथन प्रेम ही है, तो आइये प्रेम का अंगीकार करें!"
  

.............चेतन रामकिशन "देव"..............
दिनांक-०३.०६.२०१३
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"मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित."