Saturday 16 March 2013

♥♥अनुभूति की जल धारा..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥अनुभूति की जल धारा..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
अनुभूति की जल धारा में, जब मन को स्नान कराया!
पत्थर ने भी कोमल होकर, देखो मुझको गले लगाया!
अनुभूति से पहले जिनको, मीलों दूर समझता था मैं,
जबसे से जागी है अनुभूति, हर स्थल पर उनको पाया!

बिन अनुभूति के जीवन में, नहीं भावना दया की आए!
लोग सड़क पर घायल तड़पें, कोई न उनको दवा दिलाए!

जिसके मन में अनुभूति हो, उसने सबको गले लगाया!
अनुभूति की जल धारा में, जब मन को स्नान कराया...

जब से मैंने अपने मन में, अनुभूति का बोध किया है!
तब से मैंने नीरसता के, हर पथ को अवरोध किया है!
"देव" मुझे इस अनुभूति ने, शिक्षा ध्यान लगाने की दी,
इसी ध्यान के बल पर मैंने, इस जीवन का शोध किया है!

जिसके मन में अनुभूति के, व्यापक भाव नहीं होते हैं!
किसी ओर के दुख से उसके, मन में घाव नहीं होते हैं!

इस अनुभूति ने ही देखो, नदी का कल कल गान सुनाया! 
अनुभूति की जल धारा में, जब मन को स्नान कराया!"

..................चेतन रामकिशन "देव"..................
( १७.०३.२०१३)