♥♥♥♥♥♥♥♥♥दहलीज...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तेरी दहलीज पे आया नहीं था, दूर जाने को।
हजारो लफ्ज़ जोड़े थे, तुझे दिल की सुनाने को।
भले तू अपना पूरा दिल, न मेरे नाम कर लेकिन,
जगह दे दो मुझे थोड़ी, जरा ये सर छुपाने को।
ये माना इस जनम में तुम, हमारी हो नहीं सकतीं,
जनम फिर लेना चाहूंगा, तुम्हारा प्यार पाने को।
न जीते जी मुझे तुमने, पनाहें प्यार की बख्शीं,
मगर तुम कब्र पे आना मेरी, दीया जलाने को।
हाँ माना चाँद हो तुम, और मैं रस्ते का एक पत्थर,
नहीं समझा सका दिल को, मगर तुझको भुलाने को।
नहीं कुछ पास में मेरे, मैं खाली हाथ हूँ बेशक,
तुम्हारे नाम पर करता, दुआ के हर खजाने को।
चलो तुम "देव" जो सोचो, निभाओ साथ या न तुम,
कसर कोई नहीं बाकी रखी, तुझको मनाने को। "
...............चेतन रामकिशन "देव"…............
दिनांक--०५.०१.१५