♥♥♥♥♥♥♥देह की छिलन..♥♥♥♥♥♥♥
शब्द से भाव का जब भी, ख्याल मिलता है!
मेरे एहसास में तब गीत नया खिलता है!
वैसे मिलते हैं सफ़र में तो हजारों साथी,
कोई कोई ही मगर, साथ सदा चलता है!
मैं यही सोच के पत्थर के पूजने निकला,
लोग कहते हैं पत्थर में, खुदा मिलता है!
नाम के तो हैं यहाँ, लाखों, हजारों सूरज,
कोई जांबाज ही दीपक की तरह जलता है!
"देव" कांटो ने मुझे कोई चुभन न बख्शी,
फूल की शाख रगड़ने से, बदन छिलता है!"
...........चेतन रामकिशन "देव".............
दिनांक-१४.०७.२०१३