Friday, 2 November 2012

♥जीवन का भार.♥


♥♥♥♥♥♥♥जीवन का भार.♥♥♥♥♥♥♥♥
जीवन का भार हंसके उठाने का दम भरो!
आकाश को धरती पे झुकाने का दम भरो!

भगवान के दरबार में तुम जाने से पहले,
रोते हुए इन्सां को, हंसाने का दम भरो!

मजहब की लड़ाई से भला क्या मिला कभी,
तुम प्यार के अल्फाज सिखाने का दम भरो!

नेताओं तुम अपनी ही तिजोरी न भरो बस,
तुम देश को धनवान बनाने का दम भरो!

मैं "देव" हूँ लेकिन मुझे पाषाण न कहो,
पत्थर में भी तुम फूल खिलाने का दम भरो!"

......... (चेतन रामकिशन "देव") ............


♥♥♥♥♥♥♥♥तुम्हारा साथ..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुम्हारे साथ होने से, मेरा दुःख क्षीण होता है!
तुम्हारे प्रेम की उर्जा से, मन प्रवीण होता है!

तुम्हारे प्रेम की शक्ति, मुझे बलवान करती है!
मुझे आगे बढाती है, मुझे गुणवान करती है!
तुम्हारे प्रेम की शैली, किताबों सी सुधारक है,
उजाला हमको देती है, तिमिर जीवन से हरती है! 

तुम्हारे प्रेम के सत्संग में, ये मन लीन होता है!
तुम्हारे साथ होने से, मेरा दुःख क्षीण होता है!"

.............. (चेतन रामकिशन "देव") ...............


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रीत की वर्षा ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
प्रीत की वर्षा से भीगा तन, मन भी हुआ विभोर!
सखी तुम्हारे प्रेम से देखो, मन में नाचें मोर!
सखी न हमसे नयन चुराना, न जाना तुम दूर,
सखी कभी न टूटे अपने, प्रेम की कच्ची डोर!

सखी हमारे मन को भाए, ये तेरा सिंगार!
सखी तुम्हारे प्रेम से होता, उर्जा का संचार!

निशा भी होती प्रेम से तेरे और तुम्ही से भोर! 
प्रीत की वर्षा से भीगा तन, मन भी हुआ विभोर...

सखी जगत में प्रेम से ऊँचा, नहीं कोई सम्बन्ध!
सखी प्रेम फूलों की डाली, चन्दन भरी सुगंध!
सखी तुम्हारे प्रेम से मन को मिलता है उल्लास,
सखी तुम्हारे प्रेम से होता, खुशियों का प्रबंध! 

सखी तुम्हारे प्रेम से मन में, जगे हैं कोमल भाव!
सखी तुम्हारे प्रेम सुझाये, मुझको नए सुझाव!

सखी प्रेम की न कोई सीमा, न ही कोई छोर!
प्रीत की वर्षा से भीगा तन, मन भी हुआ विभोर..

सखी प्रेम के बिना तो देखो, धनिक भी होता दीन!
सखी प्रेम से ही होता है, मन भक्ति में लीन!
सखी तुम्हारे प्रेम से देखो, नवल हुआ है "देव",
सखी प्रेम से होता है मन, कोमल और शालीन!

सखी प्रेम से रंग जायेगा, जिस दिन ये संसार!
उस दिन देखो गिर जाएगी, नफरत की दीवार!

चलो छोड़ कर नफरत लोगों, बढ़ो प्रेम की ओर! 
प्रीत की वर्षा से भीगा तन, मन भी हुआ विभोर!"

"
प्रीत-एक ऐसी अनुभूति जिसमे, न कोई भेद, न कोई हिंसा, न धन की लालसा न गरीबी का अभिशाप! प्रेम, जीवन में सार्थक परिणामों का सारथि बनता है, बशर्ते प्रेम, अपने मूल से न भटके और समर्पण भावना निहित हो! तो आइये प्रेम करें.."

चेतन रामकिशन "देव"

दिनांक-०२.११.२०१२

सर्वाधिकार सुरक्षित!
रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!