Saturday 14 July 2012

♥गोहाटी का चीरहरण...♥


♥♥♥♥♥♥♥♥गोहाटी का चीरहरण...♥♥♥♥♥♥♥♥
गोहाटी के चीरहरण की घटना से, दिल में मातम है!
बने नपुंसक लोग देश के, उनमे न लड़ने का दम है!

चौराहे पर लुटती नारी, भीख दया की मांग रही थी!
चीरहरण से बचने को वो, इधर उधर भी भाग रही थी!
उसकी आँखों के आंसू भी, बहते हैं ये सोच सोच कर,
आज उसी पर दाग लग रहा, कल तक वो बेदाग रही थी!

चीरहरण से बचा सके जो, ऐसा कोई नहीं किशन है!
गोहाटी के चीरहरण की घटना से, दिल में मातम है...

उस लुटती नारी ने देखो, उनको बहन की याद दिलाई!
हाथ जोड़कर करती मिन्नत, आप भी होंगे किसी के भाई!
लेकिन ऐसे दुशाशनों  में, कहाँ भला मर्यादा होती,
उनको तो अपनी माँ बहनें भी, लगती हैं चीज पराई!

आज भी देखो इस भारत में, नारी की न राह सुगम है!
गोहाटी के चीरहरण की घटना से, दिल में मातम है....

नहीं नपुंसकता त्यागी तो, फिर ऐसा आलम आएगा!
किसी बहन और किसी बहु का, चीरहरण फिर हो जायेगा!
"देव" यदि लड़ने की शक्ति, न हाथों में भरोगे तुम तो,
यहाँ वहां फिर जगह जगह पर, राज दुशाशन हो जायेगा!

जीवन को जीना चाहते हो, लेकिन खून रगों में कम है!
गोहाटी के चीरहरण की घटना से, दिल में मातम है!"


" गोहाटी में, एक लड़की को दरिन्दे दुशाशन बनकर, नोंचते रहे, उसके वस्त्र फाड़ते रहे, पर लोग नपुंसक बनकर देखते रहे! लेकिन वे ये नहीं जानते, जब ऐसे भेड़िये अपना शिकार करने निकलते हैं तो वे अपना पराया नहीं देखते, उनके लिए औरत, माँ या बहन नहीं, वासना का केंद्र होती है! तो जागिये, क्या पता भेड़िये अगले शिकार आपके यहाँ करने चले आयें................"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-१५.०७.२०१२

मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!
सर्वाधिकार सुरक्षित!

♥♥♥♥♥सावन की मुलाकात..♥♥♥♥♥♥


बड़ी हरियाली है, सावन की घटा छाई है!


मुझसे मिलने जो मेरी सजनी चली आई है!


बड़ी सुन्दर, बड़े प्यारे से, निखरते रंग में,


मानो तो चांदनी, धरती पे उतर आई है!


आपके रूप के चर्चे हैं, सारे फूलों में,

देखकर तुम को सखी, हर कली मुस्काई है!


अपने शब्दों से तुम्हें, कैसे अलंकृत कर दूँ,

मेरे शब्दों में सखी, तू ही तो समाई है!


तेरी आँखों में सखी, मैंने झांककर देखा,

उनमे मेरी मूरत है मेरी, मेरी ही परछाई है!"


...........चेतन रामकिशन "देव".................

♥जिंदगी में चलो...♥



♥♥♥♥♥♥जिंदगी में चलो...♥♥♥♥♥♥♥♥
जिंदगी में चलो महान ये इक , काम करें!
लोग जो याद करें, ऐसा अपना नाम करें !

जो भरी धूप में हम सब को, छांव देती है,
आओ उस माँ का अदब और हम सलाम करें!

एक सा खून है, मानव की ही संतान हैं हम,
न ही हिंसा, न भेद, न ही कत्ले-आम करें!

सिर्फ दौलत के लिए, सच को बेचकर के हम,
किसी का प्यार, यकीं, न कभी नीलाम करें!

"देव" इंसानियत के प्यार में जिन्दा रहकर,
प्यारी प्यारी सी सुबह और हसीं शाम करें!"

...."शुभ-दिन"...चेतन रामकिशन "देव"......

♥रिमझिम बूंदे..♥



♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥रिमझिम बूंदे..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥


सावन की रिमझिम बूंदों से, भीग रहा है, मेरा तन-मन!


कृषक भी खुश, पंछी भी खुश, सचमुच प्यारा होता सावन!


सावन की सुन्दर बेला में, नव अंकुर को जन्म मिला है!


पत्तों पर शबनम बिखरी है, इन्द्रधनुष सा रंग खिला है!

बागों में सावन के झूले, लगते हैं कितने मनभावन!

सावन की रिमझिम बूंदों से, भीग रहा है, मेरा तन-मन!"

..................चेतन रामकिशन "देव"........................

♥सावन की सुगंध..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥सावन की सुगंध..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
ये सावन का महीना, सौंधी खुश्बू ले के आया है!
है फूलों पर चढ़ा यौवन, भ्रमर भी मुस्कुराया है!

हवा भी शीत है मनमीत, मौसम भी सुहाना है!
हमे मन का, हमे रूह का, मिलन दिल का कराना है!
इन्ही बूंदों की रिमझिम में, मयूरा नृत्य करता है,
हमे भी प्यार का नगमा, सखी जी गुनगुनाना है!

है बिखरा प्यार का अहसास, हर दिल खिलखिलाया है!
ये सावन का महीना, सौंधी खुश्बू ले के आया है....

सखी शाखों पे देखो, कोकिला भी गीत गाती है!
ये देखो बूंद बारिश की, सखी मन को लुभाती है!
तुम्हारी ओढ़नी पर जो, कढ़े हैं फूल रेशम से,
सखी उनमे भी सावन की घटा से जान आती है!

सखी सावन ने सूखी धरती में अंकुर उगाया है!
ये सावन का महीना, सौंधी खुश्बू ले के आया है....

सखी प्रकृति के सम्मुख चलो अब सर झुकाते हैं!
इसी प्रकृति की कृपा से, हम सब खिलखिलाते हैं!
ए प्रभुवर प्रकृति से, है मेरी इक और अभिलाषा,
हंसी उनकी भी खिल जाए, जो बस आंसू बहाते हैं!

सुनो ए "देव" सावन ने, मेरा चिंतन जगाया है!
ये सावन का महीना, सौंधी खुश्बू ले के आया है!"

"
सावन का महीना, जब भी आता है, प्रेम के रंग-बिरंगे शब्दों से, आकाश के पटल पर इन्द्रधनुष की रचना होने लगती है! बारिश की बूंद सूखी धरती पे अंचल पर जब गिरती है तो सौंधी खुश्बू से वातावरण सुगन्धित हो जाता है! प्रेमालाप होता है, प्रकृति सावन की बूंदों से धुलकर यौवन पूर्ण हो जाती है! अपने इन टूटे-फूटे शब्दों से, सावन का स्वागत करने का प्रयास भर किया है!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-११.०७.२०१२

♥♥तेरी यादों से..♥♥



♥♥♥♥♥♥♥♥तेरी यादों से..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तेरी यादों से भला, दिल को अलग कैसे करूँ,
मेरे सीने में भी दिल है, कोई पाषाण नहीं!

तुम न आये तो मैंने देख ली तस्वीर तेरी,
बिन तुझे देखे गुजरती है, सुबह, शाम नहीं!

अपने ही अश्क पिए, प्यार की हिफाज़त में,
कभी भूले से भी, तुमको किया बदनाम नहीं!

प्यार न बिकता है, न इसको खरीदा जाये,
प्यार बाज़ार में बिकता हुआ, सामान नहीं!

दूर रहके भी "देव" चाहा, तुम्हें पूजा है,
तू मेरा अपना है, कोई अजनबी इन्सान नहीं!"

.........चेतन रामकिशन "देव"..................