Sunday, 5 October 2014

♥आंसुओं की लहरें...♥


♥♥♥♥आंसुओं की लहरें...♥♥♥♥
रंग तस्वीर के सुनहरे हैं। 
घाव पर दिल में देखो गहरे हैं। 

ठोकरें मारके वो आगे बढे,
हम मगर उस जगह ही ठहरे हैं। 

दिल को देखा तो स्याह निकला वो ,
चाँद जैसे भले ही चहरे हैं। 

कैसे मुफ़लिस उन्हें बताये तड़प,
जिनपे महलों पे इतने पहरे हैं। 

आह सुनकर भी फेर लें मुंह को,
आज के लोग इतने बहरे हैं। 

उनका दिल तो बड़ा ही छोटा मिला,
जीत के जिनके सर पे सहरे हैं!

झील सूखी तो "देव" प्यासे क्यों,
मेरे घर आंसुओं की लहरें हैं। "

......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक- ०५.१०.२०१४