♥♥♥♥♥♥♥ये कैसी आधुनिकता..♥♥♥♥♥♥♥♥
न नैतिकता, न मर्यादा, ये कैसी आधुनिकता है!
न जीवन में सरसता है, न वाणी में मधुरता है!
हम अपने तन के वस्त्रों को बहुत ही अल्प कर बैठे,
मगर इस नग्नता से, कौनसा सूरज निकलता है!
हम अपने आप को मदिरा के सागर में डूबा बैठे,
भला मदिरा के पीने से, कहाँ कोई हल निकलता है!"
.........."शुभ-दिन"....चेतन रामकिशन "देव".........