♥♥♥♥♥♥---आने वाला कुछ घंटो में♥♥♥♥♥♥♥♥
"आने वाला कुछ घंटो में, आजादी का पर्व!
भारत वासी होने पर हम, करेंगे खासा गर्व!
न जननी के चीरहरण से, फर्क हमे पड़ता है,
सत्ताधारी अम्बर बेचें, या बेचें भूगर्भ!
अपने मतलब सिद्ध करें हम, न माटी का मोल!
हम मानव की रूह नहीं हैं, केवल खाली खोल!
अपने मन में भरें जरा, हम जननी से अपनत्व!
आने वाला कुछ घंटो में, आजादी का पर्व.......
घरों से अपने हटा रहें हैं, महापुरुषों के चित्र!
देश प्रेम की घटी भावना, आलम बड़ा विचित्र!
नहीं बजा करते हैं अब तो, देश प्रेम के गीत,
गली गली हर चौराहे पर, चलें दुरित चलचित्र!
भुला चले मनमथ गुप्ता को, नहीं रहे आजाद!
विस्मृत हुयी शहादत उनकी, देशप्रेम बरबाद!
देश हितों की गर्मी आए, भरो लहू में तत्व!
आने वाला कुछ घंटो में, आजादी का पर्व.......
आजादी के दिन को हमने, बना दिया एक रस्म!
देशप्रेम तो हमने जाने, किया कभी का भस्म!
देश में शत्रु पनप रहे पर, "देव" है चिंता हीन,
इससे तो अच्छा हम पाते, पाषाणों का जन्म!
खद्दरधारी पहन के खद्दर, करें देश का अंत!
देख तमाशा खुश होते हम, बनकर बहरे संत!
सबक नहीं ले सकते जिनसे, बदलो वो क्रतत्व!
आने वाला कुछ घंटो में, आजादी का पर्व"
"अगली सुबह आजादी की भोर की स्मृति लेकर आएगी! किन्तु सच्चे अर्थों में देश की व्यवस्था ने देश की बहुसंख्यक आबादी को गुलाम बना दिया है! देश को फिर से महासंग्राम की जरुरत है! ये महासंग्राम हर हाल में लड़ना ही है तो फिर देर क्यूँ? - चेतन रामकिशन "देव"
"आने वाला कुछ घंटो में, आजादी का पर्व!
भारत वासी होने पर हम, करेंगे खासा गर्व!
न जननी के चीरहरण से, फर्क हमे पड़ता है,
सत्ताधारी अम्बर बेचें, या बेचें भूगर्भ!
अपने मतलब सिद्ध करें हम, न माटी का मोल!
हम मानव की रूह नहीं हैं, केवल खाली खोल!
अपने मन में भरें जरा, हम जननी से अपनत्व!
आने वाला कुछ घंटो में, आजादी का पर्व.......
घरों से अपने हटा रहें हैं, महापुरुषों के चित्र!
देश प्रेम की घटी भावना, आलम बड़ा विचित्र!
नहीं बजा करते हैं अब तो, देश प्रेम के गीत,
गली गली हर चौराहे पर, चलें दुरित चलचित्र!
भुला चले मनमथ गुप्ता को, नहीं रहे आजाद!
विस्मृत हुयी शहादत उनकी, देशप्रेम बरबाद!
देश हितों की गर्मी आए, भरो लहू में तत्व!
आने वाला कुछ घंटो में, आजादी का पर्व.......
आजादी के दिन को हमने, बना दिया एक रस्म!
देशप्रेम तो हमने जाने, किया कभी का भस्म!
देश में शत्रु पनप रहे पर, "देव" है चिंता हीन,
इससे तो अच्छा हम पाते, पाषाणों का जन्म!
खद्दरधारी पहन के खद्दर, करें देश का अंत!
देख तमाशा खुश होते हम, बनकर बहरे संत!
सबक नहीं ले सकते जिनसे, बदलो वो क्रतत्व!
आने वाला कुछ घंटो में, आजादी का पर्व"
"अगली सुबह आजादी की भोर की स्मृति लेकर आएगी! किन्तु सच्चे अर्थों में देश की व्यवस्था ने देश की बहुसंख्यक आबादी को गुलाम बना दिया है! देश को फिर से महासंग्राम की जरुरत है! ये महासंग्राम हर हाल में लड़ना ही है तो फिर देर क्यूँ? - चेतन रामकिशन "देव"