Thursday, 9 January 2014

♥♥♥कुंदन..♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥कुंदन..♥♥♥♥♥♥♥
आंच में तपकर कुंदन बनना!
यहाँ सुगन्धित चंदन बनना!
लोग करें जो तुम्हे विभूषित,
तुम सबका अभिनंदन बनना!

लक्ष्य पे अपने निश्चय करना!
सच्चाई की तुम जय करना!
सफ़र भले ही लम्बा हो पर,
धीरे धीरे तुम तय करना!

पुलकित करना हरियाली को,
तुम फूलों के कंगन बनना!
लोग करें जो तुम्हे विभूषित,
तुम सबका अभिनंदन बनना।।

आसमान के तारों जैसे!
जल की मधुर फुहारों जैसे!
तुम लोगों को ख़ुशी बांटना,
बनकर हसीं बहारों जैसे!

घायल के घावों को भरकर,
मानवता का वंदन बनना!
लोग करें जो तुम्हे विभूषित,
तुम सबका अभिनंदन बनना।।

किसी के दिल पे ठेस लगे न!
मन में हिंसा द्वेष जगे न!
"देव" तुम्हारे कोमल दिल में,
कोई भी आवेश जगे न!

नहीं देखना बस धनिकों को,
निर्धन का भी वंदन बनना!
लोग करें जो तुम्हे विभूषित,
तुम सबका अभिनंदन बनना।।

......चेतन रामकिशन "देव"…..
दिनांक-०९.०१.२०१४