♥♥♥♥♥♥बालकाल( श्रेष्ठ काल) ♥♥♥♥♥♥♥♥
बालहठों के दिवस अनोखे, स्वप्न सजीली रातें!
विस्मृत नहीं हुई हैं मन से, सुखद सुरीली बातें!
यूँ तो जीवन दीर्घ है किन्तु, बालकाल उत्तम है,
बालकाल में नहीं उपजती, घ्रणा की आघातें!
बालकाल के मनोभाव में, किंचित भेद नहीं होता है!
घर से माखन चुरा भी लें, तो कोई खेद नहीं होता है!
बालकाल तो स्वर्णकाल है, रजत भरी सौगातें!
बालहठों के दिवस अनोखे, स्वप्न सजीली रातें.......
जात धर्म की अग्नि में, ये बालकाल ना जलता!
रामू हो या कोई हामिद, साथ साथ है फिरता!
एक दूजे के संग में खाते, बैठके रोटी चावल,
किसी सखा को चोट लगे तो, मन अश्रु से भरता!
बालकाल की वाणी में, अनवाद नहीं होता है!
मेल जोल का जीवन हो, अवसाद नहीं होता है!
बालकाल में नहीं उभरती, हिंसा की प्रभातें!
बालहठों के दिवस अनोखे, स्वप्न सजीली रातें.......
बालकाल से ग्रहण करो तुम, मानवता का ज्ञान!
मन में कोई द्वेष ना रखो, ना कोई अभिमान!
"देव" यदि बचपन से हमने, सीख लिया अपनापन,
जात धर्म के हाथ ना होगा, मानव का अपमान!
बालकाल के जीवन में, प्रहार नहीं होता है!
पुष्पों जैसा कोमल हो, वो खार नहीं होता है!
बालकाल में नहीं बरसतीं, स्वार्थमयी बरसातें!
बालहठों के दिवस अनोखे, स्वप्न सजीली रातें!"
"जात, धर्म, हिंसा, प्रहारों से ऊपर, जीवन का श्रेष्ठ काल "बालकाल" होता है! आइये, अपने बचपन के दर्पण में झांककर, वहां से प्रेम, सदाचार, सोहार्द को ग्रहण करें!-चेतन रामकिशन "देव"
बालहठों के दिवस अनोखे, स्वप्न सजीली रातें!
विस्मृत नहीं हुई हैं मन से, सुखद सुरीली बातें!
यूँ तो जीवन दीर्घ है किन्तु, बालकाल उत्तम है,
बालकाल में नहीं उपजती, घ्रणा की आघातें!
बालकाल के मनोभाव में, किंचित भेद नहीं होता है!
घर से माखन चुरा भी लें, तो कोई खेद नहीं होता है!
बालकाल तो स्वर्णकाल है, रजत भरी सौगातें!
बालहठों के दिवस अनोखे, स्वप्न सजीली रातें.......
जात धर्म की अग्नि में, ये बालकाल ना जलता!
रामू हो या कोई हामिद, साथ साथ है फिरता!
एक दूजे के संग में खाते, बैठके रोटी चावल,
किसी सखा को चोट लगे तो, मन अश्रु से भरता!
बालकाल की वाणी में, अनवाद नहीं होता है!
मेल जोल का जीवन हो, अवसाद नहीं होता है!
बालकाल में नहीं उभरती, हिंसा की प्रभातें!
बालहठों के दिवस अनोखे, स्वप्न सजीली रातें.......
बालकाल से ग्रहण करो तुम, मानवता का ज्ञान!
मन में कोई द्वेष ना रखो, ना कोई अभिमान!
"देव" यदि बचपन से हमने, सीख लिया अपनापन,
जात धर्म के हाथ ना होगा, मानव का अपमान!
बालकाल के जीवन में, प्रहार नहीं होता है!
पुष्पों जैसा कोमल हो, वो खार नहीं होता है!
बालकाल में नहीं बरसतीं, स्वार्थमयी बरसातें!
बालहठों के दिवस अनोखे, स्वप्न सजीली रातें!"
"जात, धर्म, हिंसा, प्रहारों से ऊपर, जीवन का श्रेष्ठ काल "बालकाल" होता है! आइये, अपने बचपन के दर्पण में झांककर, वहां से प्रेम, सदाचार, सोहार्द को ग्रहण करें!-चेतन रामकिशन "देव"