Wednesday 30 April 2014

♥♥मजदूर के आंसू ♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥मजदूर के आंसू  ♥♥♥♥♥♥♥
शीत में देखो गलन, धूप में तपन सहता!
बिन दवाओ के यहाँ घाव की दुखन सहता!
कोई समझे नहीं मज़दूर के हालातों को,
भूख और प्यास का जीते जी वो क़फ़न सहता!

हर सियासी इन्हे छलने का काम करता है!
झूठे आंसू से भरोसा का, नाम करता है!
इनका मालिक भी नहीं देता है मेहनत है धन,
उनका सुख, चैन तलक वो नीलाम करता है!

चूल्हा ठंडा है बहुत भूख की अगन सहता!
शीत में देखो गलन, धूप में तपन सहता...

बिना रोटी के वो ज़िंदा भी भला कैसे रहे!
वो भी इन्सान है आखिर वो जुल्म कितना सहे!
"देव" कोई न सुने उसकी आह और चीखें,
फिर भला किसपे यक़ीं, किससे यहॉँ दर्द कहे!

उसकी आँखों से आंसुओं का समंदर बहता! 
शीत में देखो गलन, धूप में तपन सहता!"

...........चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-०१.०५.२०१४

" मई दिवस पर मजदूरों को नमन "

♥♥दोस्त बनकर♥♥

♥♥♥♥♥दोस्त बनकर♥♥♥♥♥
दोस्त बनकर जो पास आते हैं!
दुश्मनी फिर वही निभाते हैं!

सर छुपाने को जिसने बख़्शी जगह,
उसके के घर को वो जलाते हैं!

कोई तड़पे, कोई कराहे मगर,
लोग कब किसके काम आते हैं!

जाने वो कैसे रौंदते दिल को,
हम तो सुनकर के काँप जाते हैं!

मेरी तक़दीर की कमी शायद,
हम तो साहिल पे डूब जाते हैं!

जिसने पाला था जिसने पोसा था,
लोग उसका भी खूँ बहाते हैं!

"देव" मुझसे न मिल अकेले में,
लोग चर्चा में बात लाते हैं!" 

....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक-३०.०४.२०१४