Sunday, 7 May 2017

♥♥♥♥धुआं धुआं सा...♥♥♥♥♥♥

♥♥♥♥धुआं धुआं सा...♥♥♥♥♥♥
धुआं धुआं सा छाया क्यों है। 
हर एक शख़्श पराया क्यों है। 

भीतर से तो काला है दिल,
बाहर मगर छुपाया क्यों है। 

जिसकी एक दिन मांग भरी थी,
जिंदा उसे जलाया क्यों है। 

सात जन्म तक की कसमें थीं,
एकदम उन्हें भुलाया क्यों है। 

जो मुफ़लिस, कमजोर, बेगुनाह,
कहर उसी पे ढ़ाया क्यों है। 

रोटी का हक़ है, उसको भी,
उसका हिस्सा खाया क्यों है। 

"देव " ज़ख्म जब भर नहीं सकते,
आखिर नमक लगाया क्यों है। "


......चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक- ०८.०५.२०१७  
(मेरी यह रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित, सर्वाधिकार सुरक्षित )