Friday, 1 November 2013

♥♥♥उजियारा..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥उजियारा..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
खुशियों के दीपक जल जायें, बस हर घर में उजियारा हो!
हिंसा, नफरत, द्वेष रहे न, ये भारत इतना प्यारा हो!
एक दूजे के दर्द को समझें, प्यार करें, अपनायत रखें,
सब हो जायें एक दूजे के, सबका एक ही घर द्वारा हो!

ये त्यौहार यही कहते हैं, प्यार वफा की डोर न टूटे!
साथ रहे अच्छे लोगों का, कभी किसी का साथ न छूटे!

न अधरों पर कड़वाहट हो, न आँखों में अँधियारा हो!
खुशियों के दीपक जल जायें, बस हर घर में उजियारा हो....

एक दूजे के साथ सभी का, वक़्त ख़ुशी ये कट जाये!
नफरत का ये काला बादल, सारी दुनिया से छंट जाये!
"देव" जहाँ में सबसे पहले, जात हमारी इंसानों की,
एक दूजे की खुशियां अपनी, एक दूजे का दुख बंट जाये!

जब आपस में मिलकर के हम, जीवन का आगाज़ करेंगे!
उस दिन देखो खुले गगन में, हम खुलकर परवाज़ करेंगे!

नहीं दवा को तरसे कोई, न रोटी का दुखियारा हो!
खुशियों के दीपक जल जायें, बस हर घर में उजियारा हो!"

....................…चेतन रामकिशन "देव"…....................
दिनांक-०१.११.२०१३

♥♥निर्धन की आतिशबाजी..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥निर्धन की आतिशबाजी..♥♥♥♥♥♥♥♥
धन की वर्षा होती है पर, निर्धन के आँगन से बाहर,
निर्धन के आंगन में हर दिन, पीड़ा के अंकुर उगते हैं!

खून पसीने की मेहनत से, जो खेतों में अन्न उगाता,

उस कृषक के नंगे तन पे, सर्दी के कांटे चुभते हैं!

आज सवेरे नजर पड़ी जब, मेरी सड़कों, फुटपाथों पर,

बिना फुंकी आतिशबाजी को, निर्धन के बच्चे चुनते हैं! 

चाहें कोई सियासी हो या दफ्तर का कोई ऊँचा अफसर,

इन लोगों के कान भला कब, निर्धन की पीड़ा सुनते हैं!

"देव" भला वो क्या देखेंगे, निर्धन के दामन के कांटे,

जिन लोगों ने बचपन से ही, अय्याशी के सुख भुगते हैं!" 

................…चेतन रामकिशन "देव"…..................

दिनांक-01.11.2013