Monday, 15 October 2012


♥♥♥♥♥♥♥♥देश के नाम ♥♥♥♥♥♥♥♥♥
देश के नाम जो मर जाते हैं, मिट जाते हैं!
लोग ऐसे कहाँ अब, याद किये जाते हैं!

हम तो डरते हैं यहाँ मौत की खनक से ही,
और वो फांसी के फंदे पे भी मुस्काते हैं!

उनकी तस्वीर पे दो फूल भी नहीं साहब,
और हम पत्थरों पे लाख धन लुटाते हैं!

मुल्क में रहते हैं अब सिर्फ तमाशाई ही,
और गुंडे यहाँ इज्ज़त को लूट जाते हैं!

इससे तो अच्छा है वो "देव" पुराना भारत,
लोग बच्चों को जहाँ, होंसला सिखाते हैं!"

........चेतन रामकिशन "देव"...........


♥♥♥♥♥♥♥न ही देखा माँ दुर्गे को..♥♥♥♥♥♥♥♥
न ही देखा माँ दुर्गे को, न देखा माँ सरस्वती को!
न लक्ष्मी को देखा मैंने, न ही देखा शैल छवि को!

अपनी दोनों माताओं में, पर इनके दर्शन होते हैं!
देवी शक्ति के ह्रदय भी, माँ जैसे कोमल होते हैं!

देवी जैसे सुन्दर करतीं, दोनों माता मेरी मति को!
न ही देखा माँ दुर्गे को, न देखा माँ सरस्वती को!"
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चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-१६.१०.२०१२ 


"
नवरात्रि के पवित्र दिवसों की बेला पर अपनी दोनों माताओं( माँ कमला देवी और माँ प्रेमलता जी) को 


समर्पित पंक्तियाँ, मैंने माँ दुर्गे अथवा उनके रूप अपनी आँखों से भले नहीं देखे हों, किन्तु मुझे अपनी दोनों 

माताओं में उनकी छवि दिखती है! क्यूंकि माँ(नारी) होती हैं और नारी स्वयं देवी होती हैं"


♥♥♥♥शब्दों का तन..♥♥♥♥♥
आज कलम का मन ज़ख़्मी है 
और शब्दों का तन ज़ख़्मी है!

हिंसा से भूमि घायल है,  
और ये नील गगन ज़ख़्मी है!

हंसी भला कैसे आये,
जब मानवता की लाश पड़ी हो!

नहीं कफ़न तक के पैसे हों,
और निर्धन की रुदन घड़ी हो!

संतानों के होते भी जब,
घर के बूढ़े मांगे भिक्षा,

और लोगों की जान से ज्यादा,
जब दौलत की छवि बड़ी हो!

हरियाली का वध करने से,
आज हमारा वन ज़ख़्मी है!

आज कलम का मन ज़ख़्मी है!
और शब्दों का तन ज़ख़्मी है!"

....चेतन रामकिशन "देव"......