♥♥♥♥पीले फूल...♥♥♥♥
पीले फूल खिले हैं मन में।
रंग आ गया है यौवन में।
भाव नये कुछ शब्द मिले हैं,
जगी कविता अंतर्मन में।
रूप बसंती प्यारा लगता,
धरा सुगन्धित हो जाती है।
पुलकित होते नयन देखकर,
माला सुरभित हो जाती है।
थकन मिटी, उल्लास मिला है,
ऊर्जा आयी है जीवन में।
भाव नये कुछ शब्द मिले हैं,
जगी कविता अंतर्मन में...
खेतों में नवजीवन आया।
सरसों ने मन को महकाया।
चहक रहीं हैं प्यारी चिड़ियाँ,
उनका कलरव मन को भाया।
कई माह के सूनेपन के,
बाद ख़ुशी आयी आँगन में।
भाव नये कुछ शब्द मिले हैं,
जगी कविता अंतर्मन में...
आओ बसंती पर्व मनायें।
गीत प्रेम के मन से गायें।
हिंसा, घृणा विस्मृत करके,
"देव" प्रेम का जल बरसायें।
मेलजोल में ही मधुकर है,
नहीं रखा कुछ भी अनबन में।
भाव नये कुछ शब्द मिले हैं,
जगी कविता अंतर्मन में। "
....चेतन रामकिशन "देव"…..
दिनांक--२४.०१.१५