Monday 13 October 2014

♥♥♥सामना...♥♥♥



♥♥♥♥♥♥सामना...♥♥♥♥♥♥♥
रंग चाहत का जब उतरने लगे। 
प्यार का फूल जब बिखरने लगे। 
कर लो गुमनाम खुद को उस लम्हा,
सामना होना जब अखरने लगे। 

वो जिन्हे कद्र नहीं चाहत की,
उनसे उम्मीद क्यों लगाते हो। 
सोखने वो न आएंगे तो फिर,
बेवजह अश्क़ क्यों बहाते हो। 

हौंसला रखना तुम बहुत ज्यादा,
कोई अपना जो पर कतरने लगे। 

रंग चाहत का जब उतरने लगे....

नाम के हमसफ़र से अच्छा है,
खुद ही तन्हा सफर को तय करना। 
जब कोई हाथ न बढ़ाये तो,
मंजिलों पे खुद ही विजय करना। 

जीत जाओगे तुम यहाँ एक दिन,
दिल का अंधेरा जब निखरने लगे। 

रंग चाहत का जब उतरने लगे....

साथ होता तो देखो अच्छा था,
पर बिना साथ के नहीं डरना। 
"देव" मुश्किल से आदमी हो बने,
खुद में अवसाद तुम नही करना। 

गीत एक अच्छा फिर बनेगा सुनो,
मन में ख़ामोशी जब पसरने लगे। 

रंग चाहत का जब उतरने लगे। 
प्यार का फूल जब बिखरने लगे।"

.........चेतन रामकिशन "देव"……|
दिनांक- १४.१०.२०१४

♥♥♥परिंदा....♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥परिंदा....♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
शाम होते ही मेरे घर को लौट आता है। 
एक परिंदा है जो मुझसे वफ़ा निभाता है। 

उसकी आवाज की बेशक मुझे पहचान नहीं,
प्यार के बोल मगर मुझको वो सुनाता है! 

उसमें दिख जाती है, उस वक़्त देखो माँ की झलक,
मुझको ठंडक के लिए, पंख जो फैलाता है। 

लोग तो मिन्नतें करके भी छीनते सांसें,
ये परिंदा है जिसे, छल न कोई आता है। 

कोई मजहब ही नहीं, सबके लिए अपना वो,
कभी मंदिर, कभी मस्जिद में घर बनाता है। 

कभी तन्हाई में जो करता गुफ्तगू उससे,
अपनी पलकों को बड़े हौले से झुकाता हैं। 

"देव" उस आदमी के होंसले नहीं मरते,
वो परिंदो का हुनर, जिस किसी को आता है। "

.............चेतन रामकिशन "देव"…...........
दिनांक- १३.१०.२०१४