Friday 31 May 2013

♥♥एहसासों का सागर.♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥एहसासों का सागर.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
बूंद बूंद भर एहसासों का, एक सागर मैं बना रहा हूँ!
अपनी आँखों को सपनों की, एक एक सीढ़ी गिना रहा हूँ!
इस दुनिया के लोग तो देखो, मूक-बधिर जैसे बन बैठे,
इसीलिए अपनी पीड़ा को, मैं खुद को ही सुना रहा हूँ!

कुछ सपने बेशक टूटे हैं, लेकिन हार नहीं मानी है!
मैंने अपने प्रयासों में, शामिल कमियां पहचानी हैं!

न मैं अवसरवादी बनकर, कोई अवसर भुना रहा हूँ!
बूंद बूंद भर एहसासों का, एक सागर मैं बना रहा हूँ...

गम की भारी वर्षा में भी, सुख की आस नहीं खोते हैं!
जो मंजिल की चाह में देखो, मन की नींद नहीं सोते है!
"देव" वही इंसान जहाँ में, इतिहासों की रचना करते,
जो बे-संसाधन होकर भी, पथ से दूर नहीं होते हैं!

हाँ सच है के ये जीवनपथ, हर पल ही आसान नहीं है!
बिना त्याग के पर जीवन की, किंचित भी पहचान नहीं है!

अपने अधरों से कानों को, गीत विजय का सुना रहा हूँ!
बूंद बूंद भर एहसासों का, एक सागर मैं बना रहा हूँ!"

..................चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-०१.०६.२०१३






  

Thursday 30 May 2013

♥♥♥झील सी तेरी आँखे..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥झील सी तेरी आँखे..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तेरी गहरी झील सी आँखों में, खोना अच्छा लगता है !
मुझे तेरे कंधे पर सर रखकर, सोना अच्छा लगता है!
तुमको छूकर, तुम्हें देखकर, मन को गहरी राहत मिलती,
सखी तुम्हारे साथ में सपनों को, बोना अच्छा लगता है!

तू सुन्दर है तन से हमदम, और मन से भी निखरी है तू!
इन फूलों पर, हरियाली पर, शबनम बनकर बिखरी है तू!

इस दुनिया में बस मुझको, तेरा होना अच्छा लगता है!
तुमको बाहों में भरकर के, हमदम सोना अच्छा लगता.."

अंगारों जैसी दुनिया में, तुम फूलों जैसी कोमल हो!
रेगिस्तानी धूप में हमदम, तुम गंगा का शीतल जल हो!
"देव" तुम्हारी प्रीत ने मुझको, मानवता के भाव दिए हैं,
तुम उर्जा हो, तुम्ही प्रेरणा, तुम्हीं हमारे मन का बल हो!

अंतर्मन में किया उजाला, ऐसी सुन्दर ज्योति हो तुम!
और सीपी की गहराई से, मिलने वाला मोती हो तुम!

तेरी पायल की रुनझुन में, गुम होना अच्छा लगता है!
तेरी गहरी झील सी आँखों में, खोना अच्छा लगता है !"

..................चेतन रामकिशन "देव"...................
दिनांक-३१.०५.२०१३

Tuesday 28 May 2013

♥♥गगन का सूर्य .♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥गगन का सूर्य .♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
गगन का सूर्य बन जाओ, उजाला हर तरफ कर दो!
मोहब्बत का दीया बनकर, जहाँ में प्यार तुम भर दो!
बनो ऐसे के दुनिया में, खुशी दे पाओ लोगों को,
जो मरकर याद आओ तुम, यहाँ खुद को अजर कर दो!

गमों की आंच में तपकर, हमें हिम्मत बढ़ानी है!
कभी हँसना है जोरों से, कभी आँखों में पानी है!

जो तुम छा जाओ दुनिया पर, चलो ऐसा हुनर कर दो!
गगन के सूर्य बन जाओ, उजाला हर तरफ कर दो...

बनाकर दिल को पत्थर सा, नहीं इंसान बन सकते!
किसी मुफलिस के चेहरे की, नहीं मुस्कान बन सकते!
जरा तुम "देव" खुद को आईने में, झांककर देखो,
सफर काँटों के मेहनत बिन, नहीं आसान बन सकते!

कभी तुम हार के डर से, इरादे तोड़ न देना!
कभी हाथों से मेहनत के हुनर को, छोड़ न देना!

निशां बन जायें कदमों के, चलो इतना असर कर दो!
गगन के सूर्य बन जाओ, उजाला हर तरफ कर दो!"

....................चेतन रामकिशन "देव"....................
दिनांक-२९.०५.२०१३

Sunday 26 May 2013

♥♥प्रेम-गीत..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रेम-गीत..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
गीत गुनगुनाना चाहता हूँ, यदि हमारा गीत बनो तुम!
तुम बनकर एहसास हमारे, सखी हमारी मीत बनो तुम!
बिना तुम्हारे धूप की गर्मी, मेरे तन को जला रही है,
तुम ही छाया बनो वृक्ष की, तुम ही वर्षा, शीत बनो तुम!

इस जीवन के पथ पर देखो, जिस दिन हम तुम मिल जायेंगे!
उस दिन देखो जीवन पथ में, फूल खुशी के खिल जायेंगे!

मस्तक मेरा उठ जायेगा, यदि हमारी जीत बनो तुम!
गीत गुनगुनाना चाहता हूँ, यदि हमारा गीत बनो तुम...

तुम संग नया सवेरा, साँझ खुशी से भर जाएगी!
सखी तुम्हारे रूप में देखो, कुदरत मेरे घर आएगी!
तुम जब साथ रहोगी तो फिर, मुश्किल से घबराना कैसा,
देख तुम्हारे दिव्य रूप को, मुश्किल देखो डर जाएगी!

अनुभूति के सागर तट पर, हम लहरों से मिलन करेंगे!
हम दोनों एक दूजे का दुःख, सहज भाव से सहन करेंगे!

गीत मेरा दिल को छू लेगा, यदि मेरा संगीत बनो तुम!
गीत गुनगुनाना चाहता हूँ, यदि हमारा गीत बनो तुम...

प्रेम का अर्थ नहीं के इसमें, मीत का ही भूषण होता है!
प्रेम तो जग में हर मानव के, मन का आभूषण होता है!
"देव" प्रेम की खुश्बू से तुम, अपने मन को भरकर देखो,
प्रेम की युक्ति से मानव की, खुशियों का पोषण होता है!

मानवता से प्रेम का जिस दिन, देखो दीपक जल जाता है!
उस दिन हिंसा, छुआछुत का, जलता सूरज ढल जाता है!

घृणा सारी मिट जाएगी, प्रेम की व्यापक रीत बनो तुम!
गीत गुनगुनाना चाहता हूँ, यदि हमारा गीत बनो तुम!"

"
प्रेम-जहाँ परस्पर प्रेम होता है, वो प्रेम चाहें, प्रेमी-प्रेमिका के मध्य हो, या मानव और मानव के मध्य, वहां हिंसा, घृणा, छुआछुत का कोई स्थान नहीं होता! प्रेम, जहाँ परस्पर समर्पण भाव से होता है, वहां लोग अभावों में भी अपने जीवन को हंसकर जीते हैं! तो आइये अपने मन को प्रेम से भूषित करें!"

..चेतन रामकिशन "देव"..
दिनांक-२७.०५.२०१३

"सर्वाधिकार सुरक्षित"

Friday 24 May 2013

♥♥पत्थर की दुनिया..♥
नेक रास्ते तंग हो रहे!
प्रेम के फीके रंग हो रहे!
आज आदमी के दुनिया में,
पत्थर जैसे ढंग हो रहे!

दिल संवेदनहीन हो गया, 
प्रेम का धागा क्षीण हो गया!
आज आदमी इस तरह से,
अपने सुख में लीन हो गया!
लोग तड़पती देह का चेहरा,
देख के पीछे हट जाते हैं,
लगता है अब मानवता का,
स्तर बिलकुल दीन हो गया!

अपने हमको मिटा रहे हैं,
दुश्मन बेशक संग हो रहे!
आज आदमी के दुनिया में,
पत्थर जैसे ढंग हो रहे...

बड़ी बड़ी बातें लिखते हैं,
बड़े बड़े दावे करते हैं!
लेकिन वक़्त जरुरत पर वो,
अपना दिल छोटा करते हैं!
"देव" नहीं मालूम दुनिया का,
ऐसा आलम रहेगा कब तक,
इस दुनिया में कातिल खुश हैं,
और यहाँ पीड़ित मरते हैं!

गम के रेतीले मंजर में,
हम जलकर बदरंग हो रहे!
आज आदमी के दुनिया में,
पत्थर जैसे ढंग हो रहे!"

..चेतन रामकिशन "देव"..
दिनांक-२५.०५.२०१३

"सर्वाधिकार सुरक्षित"

Thursday 23 May 2013

♥♥प्रेम की छुअन..♥♥


♥♥♥प्रेम की छुअन..♥♥♥
प्रेम रोग का नाम नहीं है!
द्वेष भरा कोई काम नहीं है!
प्रेम जहाँ में बिक नहीं सकता,
प्रेम का कोई दाम नहीं है!

प्रेम सरस है, प्रेम सुधी है!
प्रेम बड़ी अनमोल निधि है!
घृणा की काई धोने को,
प्रेम बड़ी आसान विधि है!

प्रेम बिना प्रभात अकेली,
हर्ष की सुखमय शाम नहीं है!
प्रेम जहाँ में बिक नहीं सकता,
प्रेम का कोई दाम नहीं है...

छुअन प्रेम की पहुंचे मन तक,
बेशक रस्ता तन का ही हो!
प्रेम सदा रहता यादों में,
भले प्रेम क्षण भर का ही हो!
"देव" हमारे मन में तो बस,
छवि तुम्हारी वसी हुई है,
सात जनम के सपने होते,
भले प्रेम एक जन्म का ही हो!

जब से तुमको मीत चुना है,
ये जीवन नाकाम नहीं है!
प्रेम जहाँ में बिक नहीं सकता,
प्रेम का कोई दाम नहीं है!"

....चेतन रामकिशन "देव"...
दिनांक-२४.०५.२०१३

♥♥प्रेम की अवधारणा..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रेम की अवधारणा..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मेरी चाहत, मेरे प्यार का, हमदम तुम विश्वास करो जो!
तुम उल्फत के फूल बिछाकर, मेरा जीवन खास करो जो!
दूर हूँ तुमसे लेकिन फिर भी, तेरे प्यार की नजदीकी है,
मैं भी पास लगूंगा तुमको, गर मेरा एहसास करो जो!

प्रेम के अक्षर लिखने भर से, प्रेम का मानक पूर्ण नहीं है!
बिना प्रेम के कोई भी शै, दुनिया में सम्पूर्ण नहीं है!

मेरे दर्द लगेगा अपना, तुम इसका आभास करो जो!
मेरी चाहत, मेरे प्यार का, हमदम तुम विश्वास करो जो...

तुम चाहत की अनुभूति से, मेरे घर को रौशन कर दो!
गम की सारी तपिश मिटाकर, शीतल मेरा जीवन कर दो!
"देव" जहाँ में बिना प्यार के, खाई कोई मिट नहीं सकती,
तुम अपने हाथों से छूकर, उज्जवल मेरा ये मन कर दो!

मेरी आंख के आंसू में भी, तेरी प्रीत का नमक घुला है!
तेरे हाथ फिराने भर से, मेरे दर्द को सुकूं मिला है!

नया उजाला खिल जाएगा, प्रेम का तुम प्रकाश करो जो!
मेरी चाहत, मेरे प्यार का, हमदम तुम विश्वास करो जो!"

..................चेतन रामकिशन "देव"...................
दिनांक-२३.०५.२०१३



Wednesday 22 May 2013

♥♥जीवन की क्षमता ..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥जीवन की क्षमता ..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जीवन की कर्मठ क्षमता को, जो बलशाली कर जाते हैं!
जो बंजर में भी मेहनत से, इक हरियाली कर जाते हैं!
इस दुनिया में मरकर के भी, याद वही आते हैं देखो,
जो व्यक्ति अपने कर्मों से, जग खुशहाली कर जाते हैं!

जो मानवता की पीड़ा पर, दो आंसू भी नहीं बहाते!
जो गिरते इंसान को देखो, हाथ पकड़ कर नहीं उठाते!
जो बस मूक बधिर होकर के, कभी किसी का दर्द सुनें न,
जो करते हैं प्यार के दावे, प्यार को लेकिन नहीं निभाते!

ऐसे जन ही मानवता का, नाम कलंकित कर जाते हैं!
जो जीवित होते हैं लेकिन, मानवता से मर जाते हैं!
ऐसे लोगों को दुनिया में, दिल से इज्ज़त कभी मिले न,
जो बस अपने निजी स्वार्थ में, सच्चाई से डर जाते हैं!

लेकिन "देव" जमाने भर में, वही लोग अच्छे होते हैं!
जो औरों के दर्द में देखो, अपनेपन के संग रोते हैं!
जो दुनिया में अपनेपन के, भाव जगाते हैं बोली से,
जो नफरत के पेड़ काटकर, प्रेम भरे अंकुर बोते हैं!

देश की खातिर रगों में अपनी, गर्म लहू जो भर जाते हैं!
जीवन की कर्मठ क्षमता को, जो बलशाली कर जाते हैं!"

.....................चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-२३.०५.२०१३

Tuesday 21 May 2013

♥♥बेचैनी..♥♥



♥♥♥♥♥बेचैनी..♥♥♥♥♥♥
तुम बिन गहरी बेचैनी है,
सूना सूना घर लगता है!
बिना तुम्हारे मेरे हमदम,
मुझे तिमिर से डर लगता है!
मेरी सखी तू पल भर को भी,
खुद को मुझको दूर न करना,
बिना तुम्हारे इस जीवन पर,
गुमनामी का कर लगता है!

बिना तुम्हारे जीवन पथ का,
नहीं गुजारा होता हमदम!
बिना तुम्हारे इस दुनिया का,
नहीं सहारा होता हमदम!
बस तुझको ही सोच सोच कर,
विरह की बेला कटती हैं,
बिना तुम्हारे चाँद न मेरा,
नहीं सितारा होता हमदम!

बिना तुम्हारे बादल प्यासा,
थका थका अम्बर लगता है!
बिना तुम्हारे इस जीवन पर,
गुमनामी का कर लगता है!"

.....चेतन रामकिशन "देव"......
दिनांक-२१.०५.२०१३

Saturday 18 May 2013

♥♥बदलते कलमकार...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥बदलते कलमकार...♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कलमकार के शब्दों में अब, आम आदमी नहीं रहा है!
या लगता है कलमकार ने, दर्द भूख का नहीं सहा है!
इस दुनिया में देखो वो कब, दर्द किसी का लिख पाएंगे,
जिन लोगों का लाचारी में, कोई आंसू नहीं बहा है!

प्रेम की विरह घातक है पर, मुफलिस की पीड़ा से कम है!
वो क्या सच को लिख पाएगा, जिसकी हिम्मत ही बेदम है!
उनसे आखिर रणभूमि में, लड़ने की उम्मीद क्या रखें,
नाम मौत का सुन लेने से, जिस इन्सां के घर मातम है!

वो क्या जानेंगे सपनों को, जिनका सपना ढहा नहीं है!
कलमकार के शब्दों में अब, आम आदमी नहीं रहा है...

बड़ी बड़ी बातें करने से, पहले दिल को बड़ा बनाओ!
अपने दिल को मानवता के, जज्बातों का पाठ पढ़ाओ!
"देव" जहाँ में दौलत ही बस, नहीं शर्त अच्छा बनने की,
अच्छा इंसां बनना है तो, अच्छाई के दीये जलाओ!

वो क्या जाने ओस, धूप को, जो बिन छत के रहा नहीं है!
कलमकार के शब्दों में अब, आम आदमी नहीं रहा है!"

....................चेतन रामकिशन "देव".....................
दिनांक-१९.०५.२०१३

Wednesday 15 May 2013

♥♥गमों की धूप...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥गमों की धूप...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
एहसासों की कोमलता को, पल में जब कुचला जाता है!
और गमों की धूप से जलकर, जब उपवन कुम्हला जाता है!
जब रो रो कर नयन के नीचे, काले घेरे पड़ जाते हैं,
जब काँटों के रस्ते पर भी, नंगे पग निकला जाता है!

अपने जब बेगाने बनकर, दुश्मन लोगों से मिल जाते!
तो जीवन में बिन पानी के, नए नवेले गम खिल जाते! 
दुख के कारण जब जीवन का, पल पल सदियों जैसा लगता,
जब जीवन की हंसी ख़ुशी में, ये खारे आंसू घुल जाते!

ऐसे दुख के हालातों में, जीवन पथ दुर्गम होता है!
झोली में भी नहीं सिमटता, इतना सारा गम होता है!
लेकिन फिर भी "देव" जहाँ में, जो गम देखो सह जाते हैं,
उन लोगों के जीवन में ही, कुछ करने का दम होता है!

तभी तजुर्बा मिलता जग में, जब गिरकर संभला जाता है!
एहसासों की कोमलता को, पल में जब कुचला जाता है!"

....................चेतन रामकिशन "देव".....................
दिनांक-१५.०५.२०१३

Monday 13 May 2013

♥♥प्रेम का ज्योति कलश..♥


♥♥प्रेम का ज्योति कलश..♥♥♥
प्रेम का ज्योति कलश सखी तुम!
नम्र भाव और सरस सखी तुम!
तुम संवेदनशील मनुज हो,
एक मनोहारी दरस सखी तुम!

तुम फूलों की टहनी जैसी,
बड़ी ही नाजुक, बड़ी सरल हो!
तुम्ही हमारे भावों में हो,
तुम्हीं गीत और तुम्ही गज़ल हो!
तुम मेरे मन की दुल्हन हो,
तुम बिन कुछ भी नहीं सुहाता,
तुम्हीं वंदना हो जीवन की,
तुम ही उर्जा, तुम्ही विमल हो!

तुम ही मेरे दिल की धड़कन,
और जीवन का नफ़स सखी तुम!
तुम संवेदनशील मनुज हो,
एक मनोहारी दरस सखी तुम...

तुम मेरे मन की कविता हो,
शब्दकोष की चंचलता हो!
तुम पावन को ममता जैसी,
तुम गंगा सी निर्मलता हो!
"देव" तुम्हारी प्रीत ने मुझको,
हर पल गहरा सुकूं दिया है,
रेगिस्तानी धूप में भी तुम,
एहसासों की शीतलता हो!

तुम ही मेरा आसमान हो,
और हमारा फ़रश सखी तुम!
तुम संवेदनशील मनुज हो,
एक मनोहारी दरस सखी तुम!"

...चेतन रामकिशन "देव"...
दिनांक-१३.०५.२०१३

"सर्वाधिकार सुरक्षित"
"मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग http://chetankavi.blogspot.in/ पर पूर्व प्रकाशित" 

Thursday 9 May 2013

♥♥प्यार की सौंधी खुश्बू..♥♥♥


♥♥प्यार की सौंधी खुश्बू..♥♥♥
प्यार का एक समुन्दर हो तुम! 
चाँद के जैसी सुन्दर हो तुम!
एहसासों की सौंधी खुश्बू, 
और खुशी का अम्बर हो तुम!

प्यार के हर बिंदु का तुमने, 
मुझको व्यापक ज्ञान दिया है!
मुझ मामूली मनुज को तुमने, 
एक अद्भुत सम्मान दिया है!
इस दुनिया में प्यार से बढ़कर, 
कोई पूंजी हो नहीं सकती,
तुमने मुझको कदम कदम पर, 
गहरा बल प्रदान किया है!

मेरा मनवा भीग गया है, 
प्रेम से पूरित जलधर हो तुम!
एहसासों की सौंधी खुश्बू, 
और खुशी का अम्बर हो तुम...

मेरा मन का मोह तुम्हीं हो,
जीवन का आराम तुम्हीं हो!
तुम्ही सुबह का उजियारा हो,
और सुनहरी शाम तुम्ही हो!
"देव" तुम्हारे प्रेम ने मुझको,
प्रखरता से किया सुशोभित,
तुम्ही हंसी मेरे चेहरे की,
और मेरा उपनाम तुम्हीं हो!

तुम्हीं हमारी शुभ-चिन्तक हो,
और हमारी हितकर हो तुम!
एहसासों की सौंधी खुश्बू, 
और खुशी का अम्बर हो तुम!"


..चेतन रामकिशन "देव"...
दिनांक-०९.०५.२०१३
"
सर्वाधिकार सुरक्षित"







Wednesday 8 May 2013

♥♥सस्ती मौत..♥♥


♥♥♥सस्ती मौत..♥♥♥♥
अंधकार गहराया सा है!
दुख का गहरा साया सा है!
मौत हो गई कितनी सस्ती,

खौफ जहन पर छाया सा है!


शायद हम सब खुश हैं देखो,
कंक्रीट के इस जंगल में!
लोग यहाँ पर अपनेपन को,
कुचल रहे देखो दंगल में!
नया दौर क्या इसीलिए है,
मानवता का अंत करें हम,
हम औरों को पीड़ा देकर,
सदा रहें अपने मंगल में!

मानवता के ऊपर देखो,
अब खतरा मंडराया सा है!
मौत हो गई कितनी सस्ती,
खौफ जहन पर छाया सा है...

अपनी वहशत में हम देखो,
मानवता को कुचल रहे हैं!
हाड़ मांस के दिल न पिघलें,
बेशक पत्थर पिघल रहे हैं!
"देव" आज के दौर से अच्छा,
गुजरा आलम ही बेहतर था,
आज लोग बस अपने सुख में,
लाचारों को मसल रहे हैं!

पढ़े लिखे भी होकर भी हमने,
खुद को पशु बनाया सा है!
मौत हो गई कितनी सस्ती,
खौफ जहन पर छाया सा है!"

..चेतन रामकिशन "देव"...
दिनांक-०९.०५.२०१३









Monday 6 May 2013

♥♥प्यार की कुमकुम.♥♥



♥♥प्यार की कुमकुम.♥♥♥ 
तुम गर्मी में हिम जैसी हो!
वर्षा की रिमझिम जैसी हो!
तुम रोली हो, तुम चन्दन हो,
और तुम ही कुमकुम जैसी हो!

पावन गंगा के जल जैसी!
तुम अम्बर के बादल जैसी!
तुम हाथों के कंगन जैसी,
तुम पैरों की पायल जैसी!

तुम मलमल की अनुभूति हो,
और तुम्हीं रेशम जैसी हो!
तुम रोली हो, तुम चन्दन हो,
और तुम ही कुमकुम जैसी हो...

तुम कोमल हो, दयावान हो!
तुम वीणा की मधुर तान हो!
"देव" तुम्हीं नीलम रत्नों में,
तुम सपनों का आसमान हो!

नयी नवेली सुबह में तुम,
और निशा पूनम जैसी हो!
तुम रोली हो, तुम चन्दन हो,
और तुम ही कुमकुम जैसी हो!"

..चेतन रामकिशन "देव"...
दिनांक-०६.०५.२०१३

"
सर्वाधिकार सुरक्षित"

Sunday 5 May 2013

♥हक की आवाज..♥



♥♥♥हक की आवाज..♥♥♥ 
रुधिर शीत जब हो जाता है!
मन का साहस खो जाता है!
नाम मौत का सुनकर देखो, 
जिनका चेहरा रो जाता है!
ऐसे कहाँ लोग दुनिया में,
अपने हक की जंग लड़ेंगे,
लड़ने से पहले ही जिनके,
मन का संबल सो जाता है!

ये कमजोरी रहेगी जब तक,
हम उद्घोष नहीं कर सकते!
सरकारों के दमन के आगे,
किंचित रोष नहीं कर सकते!
कभी यहाँ निर्धन का शोषण,
कभी किसानों की शामत हो,
पर हम गहरी नींद त्यागकर,
खुद का होश नहीं कर सकते!

वो क्या जंग लड़ेगा डरकर,
जो भूमिगत हो जाता है!
लड़ने से पहले ही जिनके,
मन का संबल सो जाता है...

कमजोरों की सुनवाई को,
आलम बेशक कम होता है!
कोई न समझे उनके दुख को,
भले ही कितना गम होता है!
"देव" मगर हथियार से ज्यादा,
हमें जरुरत है साहस की,
क्यूंकि वो ही लड़ सकता है,
जिसके दिल में दम होता है!

वो ही दुश्मन का घर फूंके,
जो लावे सा हो जाता है!
लड़ने से पहले ही जिनके,
मन का संबल सो जाता है!"

..चेतन रामकिशन "देव"...
दिनांक-०६.०५.२०१३




Saturday 4 May 2013

♥♥मन की दुल्हन...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥मन की दुल्हन...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुमसे हर एहसास जुड़ा है, तुम अनुभूति हो जीवन की!
भले ही फेरे नहीं हुए पर, तुम दुल्हन हो अंतर्मन की!
तुम्हें देखना अच्छा लगता, तुम्हें सोचना दिल को भाए,
तुम सीपी हो, तुम मोती हो, तुम ज्योति हो मेरे मन की!

तुम दुल्हन के परिधानों में, जब भी सपनों में आती हो!
मेरे तन को, मेरे मन को, तुम खुश्बू से महकाती हो!

तुम स्वागत की अधिकारिणी, तुम माला हो अभिनन्दन की!
तुमसे हर एहसास जुड़ा है, तुम अनुभूति हो जीवन की..

नया सफर है हम दोनों का, प्रीत परस्पर सिखलानी है!
मन से मन विवाह हो गया, ये गठबंधन रूहानी है!
तुम दुल्हन के रूप में देखो, किसी परी जैसी लगती हो,
सखी तुम्हारी आंखें सुन्दर, और चेहरा भी नूरानी है!

सखी चाँद सी है सुन्दर है तू, तेरा यौवन मनोहारी है!
सखी तुम्हारे ऊपर मेरा, सारा जीवन बलिहारी है!

मुझमें छाया वसी तुम्हारी, तुम सूरत मेरे दर्पण की!
तुमसे हर एहसास जुड़ा है, तुम अनुभूति हो जीवन की..

मैं अपने हाथों से तेरा, सखी मेरी सिंगार करूँगा!
एहसासों में तुम्हें वसाकर, हर पल तुमसे प्यार करूँगा!
"देव" तुम्हारे हाथों पर मैं, प्यार भरी मेहँदी 
रचकर के,




एहसासों के सिंदूरी रंगों से, तेरी मांग भरूँगा!

मेरी दुल्हन अनुपम हो तुम, मेरे तन की जान तुम्हीं हो!
तुम्हीं मेरी कार्य कुशलता, जीवन का सम्मान तुम्हीं हो!

सोने, चाँदी से भी बढ़कर, तुम पूंजी मेरे जीवन की!
तुमसे हर एहसास जुड़ा है, तुम अनुभूति हो जीवन की!"

"
प्रेम-जिससे होता है, वो एहसासों के संसार में, कभी दुल्हन बनकर संगिनी जैसी लगती है तो कभी शिक्षक बनकर, मार्ग दर्शक! कभी मित्र बनकर सहयोगी तो कभी प्राकृतिक नजारों जैसी लगती है! सचमुच जहाँ प्रेम होता है वहां, हर एहसास, सम्बंधित पक्ष के लिए उमड़ता है!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-०५.०५.२०१३

"
सर्वाधिकार सुरक्षित"
"मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित"

♥♥मंजिल की हसरत...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥मंजिल की हसरत...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कुछ करने की हसरत जब तक, अपने मन में नहीं जगेगी!
तब तक हमको जीवन पथ में, मंजिल कोई नहीं मिलेगी!
बस किस्मत की ओर देखकर, अपनी क्षमता नष्ट न करना,
इस भूमि में बिन मेहनत के, फसल कोई भी नहीं खिलेगी!

जो जीवन में लक्ष्य बनाकर, सही दिशा में बढ़ जाते हैं! 
वही लोग मंजिल की सीढ़ी, इक दिन देखो चढ़ जाते हैं!

बिना जलाये दीप की माला, घने तिमिर में नहीं जलेगी!
कुछ करने की हसरत जब तक, अपने मन में नहीं जगेगी..

जज्बातों पर काबू रखकर, कुछ अरमान जगाने होंगे!
हमको अपनी इन पलकों पर, सपने नए सजाने होंगे!
"देव" जहाँ में बिन शिक्षा के, नहीं रौशनी मिल सकती है,
अपने मन को अधिगम देकर, अक्षर नए सिखाने होंगे!          

सपनों को पूरा करने की, जो अभिलाषा तय करते हैं!
वही लोग अपनी उर्जा से, इन सपनों पर जय करते हैं!

बिना पसीने की बूंदों से, अपनी सूरत नहीं धुलेगी!
कुछ करने की हसरत जब तक, अपने मन में नहीं जगेगी!"

...................चेतन रामकिशन "देव"......................
दिनांक-०५.०५.२०१३

Wednesday 1 May 2013

♥♥पीड़ा का भूचाल..♥♥

♥♥♥पीड़ा का भूचाल..♥♥♥
मेहनतकश का हाल वही है!
पीड़ा का भूचाल वही है!
उसकी आँखे पथराई हैं,
उसके तन की खाल वही है!

मजदूरों का हाल वही है,
लेकिन साल बदल जाता है!
भूख जलाती है भीतर से,
धूप से चेहरा जल जाता है!
ये कुदरत भी मजदूरों का,
साथ कहाँ देती है देखो,
बारिश में उसका घर टपके,
वही शीत में गल जाता है!

वही यहाँ पीड़ा में रहता,
और यहाँ कंगाल वही है!
उसकी आँखे पथराई हैं,
उसके तन की खाल वही है....

देश के सारे खद्दरधारी,
अपनी मस्ती में रहते हैं!
और मजदूरों की आँखों से,
हर पल ही आंसू बहते हैं!
"देव" यहाँ पर मजदूरों की,
आह नहीं सुनता है कोई,
भले रुदन में, चीख चीख कर,
वो अपनी पीड़ा कहते हैं!

वही यहाँ पर गुमसुम रहता,
और यहाँ बेहाल वही है!
उसकी आँखे पथराई हैं,
उसके तन की खाल वही है!"

..चेतन रामकिशन "देव"..
दिनांक-०१.०५.२०१३