Thursday, 23 May 2013

♥♥प्रेम की अवधारणा..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रेम की अवधारणा..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मेरी चाहत, मेरे प्यार का, हमदम तुम विश्वास करो जो!
तुम उल्फत के फूल बिछाकर, मेरा जीवन खास करो जो!
दूर हूँ तुमसे लेकिन फिर भी, तेरे प्यार की नजदीकी है,
मैं भी पास लगूंगा तुमको, गर मेरा एहसास करो जो!

प्रेम के अक्षर लिखने भर से, प्रेम का मानक पूर्ण नहीं है!
बिना प्रेम के कोई भी शै, दुनिया में सम्पूर्ण नहीं है!

मेरे दर्द लगेगा अपना, तुम इसका आभास करो जो!
मेरी चाहत, मेरे प्यार का, हमदम तुम विश्वास करो जो...

तुम चाहत की अनुभूति से, मेरे घर को रौशन कर दो!
गम की सारी तपिश मिटाकर, शीतल मेरा जीवन कर दो!
"देव" जहाँ में बिना प्यार के, खाई कोई मिट नहीं सकती,
तुम अपने हाथों से छूकर, उज्जवल मेरा ये मन कर दो!

मेरी आंख के आंसू में भी, तेरी प्रीत का नमक घुला है!
तेरे हाथ फिराने भर से, मेरे दर्द को सुकूं मिला है!

नया उजाला खिल जाएगा, प्रेम का तुम प्रकाश करो जो!
मेरी चाहत, मेरे प्यार का, हमदम तुम विश्वास करो जो!"

..................चेतन रामकिशन "देव"...................
दिनांक-२३.०५.२०१३



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