Thursday 12 September 2013

♥♥♥गुजरे पल....♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥गुजरे पल....♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जोड़ के छोटी छोटी कड़ियाँ, प्यार का एक घर बना रहा था!
घर के आँगन के पौधों को, मैं अपनायत सिखा रहा था!
मगर वक़्त के तूफानों ने, सब कुछ तहस नहस कर डाला,
अभी तलक तो मैं सपनों को, सीढ़ी एक एक गिना रहा था!

नहीं पता था इस जीवन में, मंजर ऐसे भी आयेंगे!
नाम हथेली पे लिखे जो, वो लम्हों में मिट जायेंगे!
जो हमको अपना कहकर के, देते थे अपनायत हर पल,
वही लोग खंजर लेकर के, मुझको दुश्मन बतलायेंगे!

मैं अपनी रोती आँखों को, चुप चुप होना सिखा रहा था!
जोड़ के छोटी छोटी कड़ियाँ, प्यार का एक घर बना रहा था!

हाँ पर ऐसे द्रश्य देखकर, मुझे तजुर्बा बहुत मिला है!
टूटे फूटे गुलदस्ते में, सपनों का फिर फूल खिला है!
"देव" मेरे इस दर्द ने मुझको, मंत्र दिया फिर से जीने का,
इसीलिए आगे बढ़ने को, मैंने खुद का घाव सिला है!

फिर जीवन में आस जगी जब, मैं गुजरे पल भुला रहा था!
जोड़ के छोटी छोटी कड़ियाँ, प्यार का एक घर बना रहा था!"

................चेतन रामकिशन "देव".................
दिनांक-१३.०९.२०१३