♥♥♥♥♥♥♥बीते हुए लम्हे♥♥♥♥♥♥♥♥
जब भी बीते हुए लम्हों पे नजर जाती है!
ख्वाब की दुनिया पुरानी सी नजर आती है!
बड़ी मेहनत से उजालों को पनाह दी मैंने,
और हवा पल में चरागों की लौ बुझाती है!
कौन समझेगा यहाँ नाते, वफ़ा, अपनापन,
अब तो दौलत की धुंध रिश्तों पे छा जाती है!
दिन तो कट जाता है रोटी की जुगत में लेकिन,
हाँ मगर रात ये पीड़ा की ग़ज़ल गाती है!
तोड़कर दिल मेरा न उनको कोई दुख पहुंचे,
मेरे होठों से मगर आह निकल जाती है!
कैसे जीते हैं वो मुफ़लिस जरा पूछो उनसे,
जिनके आंगन में दीया और नहीं बाती है!
"देव" मैं अपनी उम्र, जिनकी याद में जीता,
क्या खबर उनको मेरी याद, कभी आती है!"
..........चेतन रामकिशन "देव"…........
दिनांक-२४.०१.२०१४
जब भी बीते हुए लम्हों पे नजर जाती है!
ख्वाब की दुनिया पुरानी सी नजर आती है!
बड़ी मेहनत से उजालों को पनाह दी मैंने,
और हवा पल में चरागों की लौ बुझाती है!
कौन समझेगा यहाँ नाते, वफ़ा, अपनापन,
अब तो दौलत की धुंध रिश्तों पे छा जाती है!
दिन तो कट जाता है रोटी की जुगत में लेकिन,
हाँ मगर रात ये पीड़ा की ग़ज़ल गाती है!
तोड़कर दिल मेरा न उनको कोई दुख पहुंचे,
मेरे होठों से मगर आह निकल जाती है!
कैसे जीते हैं वो मुफ़लिस जरा पूछो उनसे,
जिनके आंगन में दीया और नहीं बाती है!
"देव" मैं अपनी उम्र, जिनकी याद में जीता,
क्या खबर उनको मेरी याद, कभी आती है!"
..........चेतन रामकिशन "देव"…........
दिनांक-२४.०१.२०१४