♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥हमराज़...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुमको हर बात पता है, तुम हो हमराज़ मेरे!
तुमसे गुजरा हुआ कल था, हो तुम्ही आज मेरे!
तुमसे एक बात तलक, मैंने न छुपाई है,
तुम ही अंजाम मेरा हो, तुम्ही आगाज़ मेरे!
जानकर भी मेरे हालात, क्यूँ शिकायत है!
तुमको मालूम है जबकि, तु मेरी चाहत है!
तुमसे लफ्जों की चमक, और तुम हो साज़ मेरे!
तुमको हर बात पता है, तुम हो हमराज़ मेरे!
तुमको सपनो का पता, तुमको ख्वाहिश का पता!
तुमको मुझपर जो हुई, हर किसी साज़िश का पता!
और तुमसे क्या छुपाऊँ, हो रूह तुम मेरी,
तुमको जीवन में हुयी दर्द की बारिश का पता!
मुझसे नाराज़ भी रहकर, क्या भला पाओगे!
क्या मेरा घर, मेरी तस्वीर, तुम जलाओगे!
तेरे सजदे में झुक सर, तुम हो सरताज मेरे!
तुमको हर बात पता है, तुम हो हमराज़ मेरे!
मेरा हर एक कदम साथ तेरे चलता है!
तुमसे मिलने को मेरा दिल भी तो मचलता है!
"देव" ये बात अलग है, कोइ मजबूरी हो,
वरना दिल मेरा भी, यादों में तेरी जलता है!
मेरी धरती भी तुम्ही, और तुम ही अम्बर हो!
मेर आँगन हो तुम्ही और तुम मेरा घर हो!
तुमसे त्यौहार मेरे और तुम रिवाज़ मेरे!
तुमको हर बात पता है, तुम हो हमराज़ मेरे!"
"
प्रेम-के पथ में जब वो क्षण आते हैं जब, एक पक्ष दूसरे पक्ष के हर व्यवहार, हर कार्य, हर अनुभूति से परिचित होते भी संदेह की अवस्था लाता है तो वहां दूसरे पक्ष को पीड़ा मिलती है, हलांकि प्रथम पक्ष के संदेह जताने की पीछे प्रेम ही होता है मगर उसका स्वरूप उसे पीडा के रूप में प्रतिस्थापित कर देता है, और ये दशा प्रेम सबंधों के खंडित होने की अवस्था तक भी पहुँच जाती है, चूँकि प्रेम सम्बन्धित पक्षों के समर्पण क विषय है तो आइये चिन्तन करेँ! "
...........चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-०३.०५.२०१४
तुमको हर बात पता है, तुम हो हमराज़ मेरे!
तुमसे गुजरा हुआ कल था, हो तुम्ही आज मेरे!
तुमसे एक बात तलक, मैंने न छुपाई है,
तुम ही अंजाम मेरा हो, तुम्ही आगाज़ मेरे!
जानकर भी मेरे हालात, क्यूँ शिकायत है!
तुमको मालूम है जबकि, तु मेरी चाहत है!
तुमसे लफ्जों की चमक, और तुम हो साज़ मेरे!
तुमको हर बात पता है, तुम हो हमराज़ मेरे!
तुमको सपनो का पता, तुमको ख्वाहिश का पता!
तुमको मुझपर जो हुई, हर किसी साज़िश का पता!
और तुमसे क्या छुपाऊँ, हो रूह तुम मेरी,
तुमको जीवन में हुयी दर्द की बारिश का पता!
मुझसे नाराज़ भी रहकर, क्या भला पाओगे!
क्या मेरा घर, मेरी तस्वीर, तुम जलाओगे!
तेरे सजदे में झुक सर, तुम हो सरताज मेरे!
तुमको हर बात पता है, तुम हो हमराज़ मेरे!
मेरा हर एक कदम साथ तेरे चलता है!
तुमसे मिलने को मेरा दिल भी तो मचलता है!
"देव" ये बात अलग है, कोइ मजबूरी हो,
वरना दिल मेरा भी, यादों में तेरी जलता है!
मेरी धरती भी तुम्ही, और तुम ही अम्बर हो!
मेर आँगन हो तुम्ही और तुम मेरा घर हो!
तुमसे त्यौहार मेरे और तुम रिवाज़ मेरे!
तुमको हर बात पता है, तुम हो हमराज़ मेरे!"
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प्रेम-के पथ में जब वो क्षण आते हैं जब, एक पक्ष दूसरे पक्ष के हर व्यवहार, हर कार्य, हर अनुभूति से परिचित होते भी संदेह की अवस्था लाता है तो वहां दूसरे पक्ष को पीड़ा मिलती है, हलांकि प्रथम पक्ष के संदेह जताने की पीछे प्रेम ही होता है मगर उसका स्वरूप उसे पीडा के रूप में प्रतिस्थापित कर देता है, और ये दशा प्रेम सबंधों के खंडित होने की अवस्था तक भी पहुँच जाती है, चूँकि प्रेम सम्बन्धित पक्षों के समर्पण क विषय है तो आइये चिन्तन करेँ! "
...........चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-०३.०५.२०१४