Friday, 10 April 2015

♥♥फांसी का फंदा...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥फांसी का फंदा...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कुदरत का अभिशाप हुआ है, कृषक होना पाप हुआ है।
झूल रहा फांसी पर कृषक, चंहुओर संताप हुआ है।  
कुदरत के इस रौद्र रूप का, कोप बना है ग्राम देवता,
मन दुखता है, कृषक के घर, करुणा भरा विलाप हुआ है। 

सरकारों की क्षति-पूर्ति, उसको ज्यादा से ज्यादा हो। 
न मिथ्या का अनुकरण हो, न कोई कोरा वादा हो। 
सरकारें जब दर्द सुनेंगी, तो कृषक को सुख आयेगा। 
भूखा-प्यासा कृषक फिर से, सब्जी रोटी चख पायेगा। 

भस्म हुये हैं सारे सपने, दुख का इतना ताप हुआ है। 
मन दुखता है, कृषक के घर, करुणा भरा विलाप हुआ है ...

बेटी की शादी का सपना, बेमौसम बारिश ने लूटा। 
क्रूर बनी ओलावृष्टि से, कोमल फसलों का तन टूटा। 
"देव" वो देखो कृषक के घर, चीख हैं या फिर है सन्नाटा,
फसल महीनों पाली लेकिन, एक दो दिन में नाता टूटा। 

आशाओं के जल का संचय, क्षण भर में ही भाप हुआ है। 
मन दुखता है, कृषक के घर, करुणा भरा विलाप हुआ है। "

" कुदरत की मार सह रहे किसानों को सांत्वना, दुआ और स्नेह सहित सादर समर्पित रचना, 
(CR सुरक्षित )

.....................चेतन रामकिशन "देव"….....................
दिनांक-११.०४.२०१५