Wednesday 19 June 2013

♥♥कुदरत का कहर.. ♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥कुदरत का कहर.. ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कुदरत के इस कहर के आगे, फिर इन्सां की हार हो गयी!
पल भर में ही खिलती क्यारी, उजड़ के देखो खार हो गयी!
जिस मंदिर के इर्द गिर्द अरसे से, गंगाजल बहता था,
आज उसी स्थल पे देखो, खून की गाढ़ी धार हो गयी!

पलक झपकते ही कुदरत ने, सब कुछ मटियामेट कर दिया!
जिस मानव को जनम दिया था, उसका ही आखेट कर दिया!

हँसते गाते लोगों के घर, पीड़ा की झंकार हो गयी! 
कुदरत के इस कहर के आगे, फिर इन्सां की हार हो गयी...

हाँ ये सच है इंसानों ने, इस कुदरत का दमन किया है!
लेकिन गलती हो जाने पर, कुदरत को ही नमन किया है!
"देव" यहाँ कुदरत के आगे, नहीं किसी की चल पाती है,
कुदरत ने खिलती बगिया को, देखो उजड़ा चमन किया है!

नहीं पता के इस कुदरत का, गुस्सा जाने कब कम होगा!
नहीं पता उजड़ी बगिया का, हरा भरा कब मौसम होगा!

जिस कुदरत ने जन्म दिया था, उसकी हम पर मार हो गयी!
कुदरत के इस कहर के आगे, फिर इन्सां की हार हो गयी!"

.........................चेतन रामकिशन "देव"........................
दिनांक-१९.०६.२०१३