Thursday, 28 April 2011


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥ बोलती लाश ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
" सुबह सुबह एक खबर उड़ी की, चौराहे पर लाश मिली है!
  सबसे अंत में जो दिखता है, उस खम्बे के पास मिली है!
  होठ भी उसके खुले खुले से, और आंखे भी फैली फैली,
  कपड़े भी हैं खून से भीगे, खून से गीली घास मिली है!

ये तो वो पगली लड़की है, कुछ दिन पहले शहर में आई!
इस अबला के संग में देखो, कुछ लोगों ने हवस बुझाई!

    नहीं सह सकी दुःख की पीड़ा, टूट गयी सांसो की माला!
    उन लोगो ने अपने सुख में, मानवता को मृत कर डाला!

यह ज़ख़्मी हालात देखकर, सिसक रहे अल्फाज हमारे!
इतनी मैली, इतनी गन्दी, सोच को आखिर कौन निखारे…………….

ये पगली लड़की तो देखो, सबको देख हंस पड़ती थी!
कभी भागती थी बच्चों संग, कभी बड़ों के संग चलती थी!
जब भी कोई उसका देता, रोटी सब्जी हाथ बढाकर,
उसकी इन दोनों अंखियों में, अपनेपन की लौ जलती थी!

    नहीं बह सकी नदियों जैसी, फूट गया अश्रु का प्याला!
    उन लोगो ने अपने सुख में, मानवता को मृत कर डाला!

ये खूनी आघात देखकर, तड़प रहें हैं साज हमारे!
इतनी मैली, इतनी गन्दी, सोच को आखिर कौन निखारे…………….

इस पगली लड़की की सिमटी, लाश भी मानो बोल रही है!
कितना नैतिक पतन हुआ है, इसका पर्दा खोल रही है!
"देव" ना जाने क्या होगा अब, कैसे चैन सुकून मिलेगा,
जैसे कांप रहा हो अम्बर, जैसे धरती डौल रही है!

     नहीं कह सकी जीते जी जो, मरकर वो प्रस्तुत कर डाला!
     उन लोगो ने अपने सुख में, मानवता को मृत कर डाला!
ये काली प्रभात देखकर, आए लब पर राज हमारे!
इतनी मैली, इतनी गन्दी, सोच को आखिर कौन निखारे!”

इस खूनी नैतिक पतन की पराकास्ठा की यह सिर्फ एक हकीक़त नहीं ही, बल्कि अनगिनत लाशें इस सत्यता को बयां करती हैं! ये कविता इसलिए लिखी क्यूंकि खुद मैंने ऐसे केस की कवरेज की है! तो आइये इस नैतिकता के माहौल का बदलने का प्रयास करें!-चेतन रामकिशन (देव)”