Tuesday, 30 October 2012

♥ लड़ने की कला ♥


♥♥♥♥♥♥♥ लड़ने की कला ♥♥♥♥♥♥♥♥
तू अपने मन से घोर निराशा का नाश कर,
तू दर्द से लड़ने की कला का विकास कर,
तू अपने आप में ही सिमटना नहीं मानव,
आकाश में उड़ने के तू अवसर तलाश कर!

तू अपने विचारों को न लाचार बनाना!
तू युद्ध से पहले ही कभी हार न जाना!

तू हार के भय से नहीं खुद को हताश कर!
तू अपने मन से घोर निराशा का नाश कर..

साधन विहीन होने से कमजोर न होना!
तू अपने मन से चेतना के भाव न खोना!
देखो उन्हें जो सड़कों की बत्ती में पढ़े थे,
जो लोग न साधन का कभी रोये थे रोना!

तू खुद को अंधेरों का न गुलाम बनाना!
दुनिया जो करे याद, ऐसा नाम कमाना!

तू "देव" दर्द छोड़ के, हंसमुख लिबास कर!
तू अपने मन से घोर निराशा का नाश कर!"

.......... (चेतन रामकिशन "देव") ...........






♥♥♥♥♥♥आंसुओं का समुन्दर..♥♥♥♥♥♥♥
नफरत ही सही तुमने मुझे कुछ तो दिया है!
इतनी बड़ी दुनिया में मुझे तन्हा किया है!

मैं तुमसे शिकायत भी यार कर नही सकता,
रब ने ही वसीयत में, मुझे दर्द दिया है!

तुम मुझको आंसुओं की, ये बूंदें न दिखाओ,
मैंने तो आंसुओं का समुन्दर भी पिया है!

जाने क्यूँ दर्द ज़ख्मों से बाहर निकल आया,
ज़ख्मों का तसल्ल्ली से रफू तक भी किया है! 

तुम "देव" मुझे कोई उजाला न दिखाओ,
अब मेरा ही दिल मानो कोई जलता दिया है!"

........... (चेतन रामकिशन "देव") ..............