Saturday, 11 January 2014

♥♥रिश्तों की बुनियाद...♥♥

♥♥♥♥♥♥रिश्तों की बुनियाद...♥♥♥♥♥♥♥♥
रूह के नूर से रिश्तों को जो निभाता है!
वो बिछड़ के भी हमें याद बहुत आता है!

नहीं कोहरा न उसे रात ये डिगा पाये, 
जिसे अँधेरे में जलने का हुनर आता है!

हाथ पे हाथ के रखने से न मिले मंजिल,
वही जीते जो यहाँ खुद को आजमाता है!

उसको आकाश भी रखता है अपने आँचल में,
अपनी उल्फत से जो दुनिया को जगमगाता है!

जिसका दिल टूट गया हो कभी मोहब्बत में,
उसको दुनिया में नहीं कुछ भी यहाँ भाता है!

उसे मालूम है रोटी की तड़प दुनिया में,
किसी भूखे के लिए जिसको तरस आता है! 

"देव" उस शख्स को हमदर्द नहीं कहता मैं,
मेरे ज़ख्मों पे नमक, जो भी गर लगाता है!"

............चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-११.०१.२०१४