Monday 7 May 2018

♥♥ठोकर...♥♥

♥♥ठोकर...♥♥
जीती बाज़ी आज गंवाई।
हमने फिर से ठोकर खाई।
सच का दीया कहाँ पनपता,
झूठ की सबने धुंध चलाई।
ढेरों मालामाल हूं अब मैं,
ग़म है, बद्दुआ और तन्हाई।
फूंक दिया उसने ही दिल को,
जिसकी थी तस्वीर लगाई।
हर रिश्ता है महज़ नाम का,
मुझको बात समझ में आई।
कितने हैं सपनों के कातिल,
रूह तलक भी घबराई।
"देव" नींद कब आये गहरी,
इसी सोच में रात बिताई।"
चेतन रामकिशन " देव"
०८.०५.२०१८
(सर्वाधिकार सुरक्षित, मेरी यह रचना मेरे ब्लॉग  http://chetankavi.blogspot.com पर पूर्व प्रकाशित। )