♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥किसी के दिल पे..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
किसी के दिल पे क्या बीतेगी, कहने वाले क्या जानेंगे!
बस इलज़ाम लगाने वाले, अपनी गलती क्या मानेंगे!
वो जिनकी आँखों को दिखता, बस नफ़रत का काला धुआं,
आखिर ऐसे लोग किसी की, चाहत को क्या पहचानेंगे!
बिना जुर्म के सजा मिले तो, मन को गहरा दुख होता है!
आँखों से बहती है धारा, उतरा उतरा मुख होता है!
मुझको ज़हर पिलाने वाले, खून को मेरे क्या छानेंगे!
किसी के दिल पे क्या बीतेगी, कहने वाले क्या जानेंगे!
इस दुनिया का हाल यही है, चकित नहीं हूँ इस मंजर से!
लोग यहाँ चाहत को काटें, कभी कुल्हाड़ी और खंजर से!
"देव" हमारे अपनेपन को, इल्ज़ामों का नाम दिया है,
इसीलिए अब चाहत छोड़ी, हमने इल्ज़ामों के डर से!
बस अपने में गुम होकर के, जो अपना जीवन जीते हैं!
कहाँ भला वो लोग जहाँ में, ज़ख्म किसी का कब सीटें हैं!
चीर के रखदूं मैं दिल भी पर, वो क्या सच को सच मानेंगे!
किसी के दिल पे क्या बीतेगी, कहने वाले क्या जानेंगे! "
...................चेतन रामकिशन "देव"…......................
दिनांक-१५.०५.२०१४
किसी के दिल पे क्या बीतेगी, कहने वाले क्या जानेंगे!
बस इलज़ाम लगाने वाले, अपनी गलती क्या मानेंगे!
वो जिनकी आँखों को दिखता, बस नफ़रत का काला धुआं,
आखिर ऐसे लोग किसी की, चाहत को क्या पहचानेंगे!
बिना जुर्म के सजा मिले तो, मन को गहरा दुख होता है!
आँखों से बहती है धारा, उतरा उतरा मुख होता है!
मुझको ज़हर पिलाने वाले, खून को मेरे क्या छानेंगे!
किसी के दिल पे क्या बीतेगी, कहने वाले क्या जानेंगे!
इस दुनिया का हाल यही है, चकित नहीं हूँ इस मंजर से!
लोग यहाँ चाहत को काटें, कभी कुल्हाड़ी और खंजर से!
"देव" हमारे अपनेपन को, इल्ज़ामों का नाम दिया है,
इसीलिए अब चाहत छोड़ी, हमने इल्ज़ामों के डर से!
बस अपने में गुम होकर के, जो अपना जीवन जीते हैं!
कहाँ भला वो लोग जहाँ में, ज़ख्म किसी का कब सीटें हैं!
चीर के रखदूं मैं दिल भी पर, वो क्या सच को सच मानेंगे!
किसी के दिल पे क्या बीतेगी, कहने वाले क्या जानेंगे! "
...................चेतन रामकिशन "देव"…......................
दिनांक-१५.०५.२०१४