♥♥♥♥♥माँ (मखमली घास)♥♥♥♥♥♥
माँ कली, माँ सुमन, मखमली घास है!
माँ ही रिमझिम सितारों का आकाश है!
माँ धरा की तरह हमको पोषित करे,
माँ के ह्रदय में ममता का आवास है!
माँ की हर एक खुशी उसकी संतान है!
माँ ही धरती पे ईश्वर की पहचान है!
माँ ही है सत्यता, माँ ही विश्वास है!
माँ कली, माँ सुमन, मखमली घास है...
माँ की जाति नही, न कोई धर्म है!
माँ तो है भावना, माँ सुखद कर्म है!
माँ की सुन्दर छवि है अनोखी बड़ी,
माँ कभी सख्त है, माँ कभी नर्म है!
माँ के आशीष में हर्ष विधमान है!
माँ ही प्रथम गुरु, माँ कुशल ज्ञान है!
माँ बड़ी साहसी, माँ ही आयास है!
माँ कली, माँ सुमन, मखमली घास है...
माँ की पावन छवि को हमारा नमन!
माँ की वाणी मधुर जैसे हो प्रवचन!
माँ ने ही "देव" हमको रचा है यहाँ,
माँ ही संतान का भार करती वहन!
माँ बड़ी ही धवल, माँ तो गुणवान है!
माँ तो संतान के मुख की मुस्कान है!
माँ का वंदन करो, माँ नहीं दास है!
माँ कली, माँ सुमन, मखमली घास है!"
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माँ-एक ऐसा शब्द, जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में ममता का भण्डार है, स्नेह का महा सागर है, अपनत्व का आकाश है, माँ की पावन छवि अनवरत वन्दनीय है, माँ का आशीष रेगिस्तान की धूप में जल की शीतलता तो शीत ऋतू में गुनगुनी धूप प्रदान करता है! तो आइये इस दिव्य स्वरूप माँ को नमन करें..."
सर्वाधिकार सुरक्षित!
ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!
(उक्त रचना मेरी माँ कमला देवी एवं माँ प्रेम लता जी को सादर समर्पित)
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-२०.११.२०१२