♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रेम पत्र...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
प्रेम पत्र जब मिला तुम्हारा, चेहरा खिलकर कमल हो गया।
पढ़ा तरन्नुम में जब मैंने, लफ्ज़ लफ्ज़ एक ग़ज़ल हो गया।
आँख मूंदकर जब खोली तो, पत्र में थी तस्वीर तुम्हारी,
तुम्हे देखकर दिल बोला ये, मेरा जीवन सफल हो गया।
पत्र तुम्हारा फूलों जैसा, मुझे सुगंधित कर देता है।
मेरी आँखों में चाहत के, लाखों सपने भर देता है।
तेरे लफ़्ज़ों के छूने से, मुरझाया मन नवल हो गया।
प्रेम पत्र जब मिला तुम्हारा, चेहरा खिलकर कमल हो गया....
प्रेम पत्र जब चूमा मैंने, लगा के मेरे पास में तुम हो।
तुम लफ़्ज़ों के अपनेपन में, और मेरे विश्वास में तुम हो।
पत्र में तुमने प्रेम विजय के, भावों का जो अक्स उभेरा ,
पढ़कर ऐसा लगा हमारे, जीवन के उल्लास में तुम हो।
पत्र की स्याही में जो तुमने, प्रेम भाव का रस घोला है।
पत्र नही वो मानो तुम हो, जिसने खुद सब कुछ बोला है।
प्रेम पत्र से प्रेम की किरणें, पाकर के मन धवल हो गया।
प्रेम पत्र जब मिला तुम्हारा, चेहरा खिलकर कमल हो गया...
मन कहता है रोज तुम्हारा, प्रेम पत्र जब मिल जायेगा।
आज की तरह मेरा चेहरा, खिले कमल सा खिल जायेगा।
"देव" तुम्हारे लफ्ज़ हमारे, जीवन को रौशन कर देंगे,
हम दोनों की ताक़त होगी, ग़म का पर्वत हिल जायेगा।
पत्र थामकर श्वेत कबूतर, जब मेरे आँगन में होगा।
पत्र रूप में प्यार तुम्हारा, जीवन के हर कण में होगा।
प्यार वफ़ा के फूल खिले तो, छोटा आँगन महल हो गया।
प्रेम पत्र जब मिला तुम्हारा, चेहरा खिलकर कमल हो गया। "
........................चेतन रामकिशन "देव"……..............
दिनांक--२४.१२.२०१४