♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥पीड़ा का गीत..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
हाँ सच है के दिल जो मांगे, उसको पूरा कर नहीं सकता!
पर अपने दिल के भावों की, हत्या भी तो कर नहीं सकता!
मैं अपने इस कोमल दिल को, आखिर क्यूँ पाषाण बनाऊं!
मैं अपने जीवित भावों को, आखिर क्यूँ बेजान बनाऊं!
अभी तलक तो किसी ने मेरे, दुख को ढ़ाढस नहीं बंधाया,
किस मुंह से फिर किसको यारों, मैं पीड़ा का गीत सुनाऊं!
लेकिन फिर भी नाकामी से, मैं जीवन में डर नहीं सकता!
हाँ सच है के दिल जो मांगे, उसको पूरा कर नहीं सकता....
बड़े पास से मैंने यारों, अपने दिल को रोते देखा!
गम की काली धुंध में मैंने, अपने सुख को खोते देखो!
"देव" मैं अपने बुरे वक़्त का, आखिर हाल बताता किससे,
जिसको दर्द सुनाना चाहा, उसको चुप चुप सोते देखा!
लेकिन उनकी तरहा उनको, मैं अनदेखा कर नहीं सकता!
हाँ सच है के दिल जो मांगे, उसको पूरा कर नहीं सकता!"
.....................चेतन रामकिशन "देव"..........................
दिनांक--१६.०१.२०१३