Saturday, 27 June 2015

♥♥स्वर्ग...♥♥

♥♥♥♥♥♥स्वर्ग...♥♥♥♥♥♥♥♥
स्वर्ग सा सुन्दर जीवन तुमसे। 
हर्षित भावों का मन तुमसे। 
तुम लेखन के प्राण तत्व में,
और शब्दों का यौवन तुमसे। 
तुम आशाओं के दीपक की,
ज्योति हो, प्रकाशमयी हो,
तुमसे मुख मंडल पे आभा,
फूल सा सुन्दर ये तन तुमसे। 

तुम्ही नायिका अनुभूति की,
काव्यकला के कौशल में हो। 
तुम्हें देखकर बूंदें बरसें,
अमृत जैसे तुम जल में हो। 

वाणी भी है मिश्री जैसी,
चित्त हुआ है पावन तुमसे। 
तुमसे मुख मंडल पे आभा,
फूल सा सुन्दर ये तन तुमसे... 

तुम करुणा के सागर में हो,
बनके देवी इस घर में हो। 
तुमसे ऊर्जा मिलती मन को,
तुम ही उड़ने के पर में हो। 
"देव" तुम्हारी मधुर छटा को,
देख के सावन स्वागत करता,
निहित तुम्ही हो संघर्षों में,
तुम ही मेहनत के कर में हो। 

तुम ही वीणा में झंकृत हो,
और पायल की छन छन तुमसे। 
तुमसे मुख मंडल पे आभा,
फूल सा सुन्दर ये तन तुमसे। "

..........चेतन रामकिशन "देव"………
दिनांक-२७.०६.२०१५ 
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