Monday 8 October 2012


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥न रुकना तुम.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
पथ हो चाहे दुर्गम कितना और सीने में गम हो कितना!
न रुकना तुम चलते जाना, तूफानी मौसम हो कितना!

समस्याओं से लड़ने की जब, शक्ति अपने मन भर लोगे!
अपने मन की दुरित भावना पर, जब तुम काबू कर लोगे!
उस दिन निश्चित ही जीवन में, उदय हर्ष का सूरज होगा,
जिस दिन तुम अपने जीवन में, नफरत से तौबा कर लोगे!

न डरना तुम अंधकार से, भले उजाला कम हो कितना!
पथ हो चाहे दुर्गम कितना और सीने में गम हो कितना...

बस किस्मत की राह देखकर, इस जीवन को नष्ट करो न!
तुम मिथ्या के संवाहक बन, इस जीवन को भ्रष्ट करो न!
इस जीवन में अभिमान के, अंकुर अपने मन में बोकर,
असहायों और कमजोरों के, जीवन में तुम कष्ट भरो न!

संतुष्टि से रहना सीखो, भले ही साधन कम हो कितना!
पथ हो चाहे दुर्गम कितना और सीने में गम हो कितना...

जो जीवन में लक्ष्य की खातिर, अपनी पीड़ा सह जाते हैं!
वही लोग एक दिन जीवन में, विजय लक्ष्य पर कर पाते हैं!
"देव" जो जीवित होकर के भी, रहते हैं मुर्दा बनकर के, 
कहाँ भला ऐसे जन देखो, दुनिया में कुछ कर पाते हैं!

खून में अपने गर्मी रखो, मौसम चाहें नम हो कितना!
पथ हो चाहे दुर्गम कितना और सीने में गम हो कितना!"

"
जीवन, जब जब आत्मविश्वास, साहस, दृढ संकल्प, संघर्ष और मेहनत के साथ जिया जाता है, तब तब जीवन में देखे गए लक्ष्य पूर्ण होते चले जाते हैं, जीवन में कमजोर और मृत प्राय रहने, जीवन अपनी उत्कृष्ट योग्यता को कभी प्राप्त नहीं कर पाता, तो आइये जीवित जीवन को, जीवित होकर जीने का प्रयास करें....."

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-०९.१०.२०१२ 

सर्वाधिकार सुरक्षित!
मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!