Sunday 12 April 2015

♥♥निकटता...♥♥

♥♥♥♥♥निकटता...♥♥♥♥♥♥
तुम्हें जानने का मन होता,
निकट मानने का मन होता। 
तेरे पग में शूल चुभें न,
धूल छानने का मन होता। 
तुमसे हर पल बातचीत हो,
कुछ कहना, कुछ सुनना चाहूं,
सात जनम तक मिलन करेंगे,
यही ठानने का मन होता। 

प्रेम का सावन जब भी बरसे,
तुमको मैं बाँहों में भर लूँ। 
अपने जीवन के हर क्षण में,
बस तुमको ही शामिल कर लूँ। 

रात मिलन की कभी ढ़ले न,
गति थामने का मन होता। 
सात जनम तक मिलन करेंगे,
यही ठानने का मन होता ...

काव्य हमारा करो अलंकृत,
उसको अनुभूति से भर दो। 
मेरा आँगन तुम बिन सूना,
आकर इसको तुम घर कर दो। 
"देव" जगत में तुम मनभावन,
और तुम्ही प्यारी लगती हो,
मेरे सपने पंख पसारें,
तुम उनको निश्चय से भर दो। 

तुम संग हो तो सदा प्रेम का,
राग तानने का मन होता। 
सात जनम तक मिलन करेंगे,
यही ठानने का मन होता। "

.......चेतन रामकिशन "देव"….....
दिनांक-१२.०४.२०१५ (CR सुरक्षित )