♥♥♥♥बुझा बुझा सा मन...♥♥♥♥♥
तुम बिन रिक्त हुआ है आँगन,
तुम बिन बुझा बुझा सा है मन।
तुम बिन क्षमता थमी कर्म की,
तुम बिन थका थका सा है तन।
तुम बिन नदियों का तट सूना,
तुम बिन बगिया मुरझाई है।
तुम बिन आँखों में लाली है,
नींद तनिक भी न आई है।
तुम बिन पत्र लिखावट भूले,
शब्दों की आँखों में आंसू,
तुम बिन है गहरी मायूसी,
कंटक माला उग आई है।
तुम बिन पौधे सूख गये हैं,
आग में झुलसा है सारा वन।
तुम बिन क्षमता थमी कर्म की,
तुम बिन थका थका सा है तन...
तुम बिन अन्न नहीं उगता है,
खेतों की रौनक गायब है।
तुम बिन पंछी मौन हो गये,
अब न चिड़ियों का कलरव है।
"देव " तुम्हारी प्रतीक्षा में,
सुबह से लेकर साँझ हो गयी,
नहीं है ध्वनि वाध यंत्र में,
न तुम बिन कोई उत्सव है।
तुम बिन मेरा मोल नहीं कुछ,
मिटटी सा मेरा ये कण कण।
तुम बिन क्षमता थमी कर्म की,
तुम बिन थका थका सा है तन। "
........चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक-२२.१२.२०१५
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