♥♥♥थोड़ी सी आग... ♥♥♥
कुछ अनबुझे चराग हैं, थोड़ी सी आग है।
साँसों में भारीपन है, आँखों में जाग है।
बाहर से पोत लेते हैं, बेशक़ सफेदी लोग,
दिल पे, ज़मीर, रूह पे, काजल का दाग है।
पहले तो जात पूछी, फिर मारा गया उसे,
इंसानियत का आज फिर उजड़ा सुहाग है।
अम्बर सुलग रहा है, नदी स्याह पड़ रही,
चिमनी से उठता धुआं, रसायन का झाग है।
सच्चाई थम रही है 'देव', लब सिले गए,
जिस सिम्त भी देखो, वहीं झूठों का राग है। "
चेतन रामकिशन "देव "
दिनांक-०६.०५.२०१९
कुछ अनबुझे चराग हैं, थोड़ी सी आग है।
साँसों में भारीपन है, आँखों में जाग है।
बाहर से पोत लेते हैं, बेशक़ सफेदी लोग,
दिल पे, ज़मीर, रूह पे, काजल का दाग है।
पहले तो जात पूछी, फिर मारा गया उसे,
इंसानियत का आज फिर उजड़ा सुहाग है।
अम्बर सुलग रहा है, नदी स्याह पड़ रही,
चिमनी से उठता धुआं, रसायन का झाग है।
सच्चाई थम रही है 'देव', लब सिले गए,
जिस सिम्त भी देखो, वहीं झूठों का राग है। "
चेतन रामकिशन "देव "
दिनांक-०६.०५.२०१९