♥♥♥पीड़ा का अंकुरण..♥♥♥
हुआ अंकुरण फिर पीड़ा का,
दवा, खाद, इसको जल दे दूँ!
हर्ष की दीमक इसे न मारे,
इसे जरा इतना बल दे दूँ!
हर्ष क्षणिक होता है किन्तु,
पीड़ा लम्बा साथ निभाए!
पीड़ा मन को शक्ति देकर,
अंधकार में दीप जलाए!
बिन पीड़ा के "देव" ये मानव,
नहीं समझ पाता है दुख को,
पीड़ा ग्राही व्यक्ति का मन,
कुछ करने की ललक जगाए!
सूखा इसको सुखा सके ने,
अश्रु धारा अविरल दे दूँ!
हुआ अंकुरण फिर पीड़ा का,
दवा, खाद, इसको जल दे दूँ!"
...चेतन रामकिशन "देव"...
(१५.०३.२०१३)