Friday 16 May 2014

♥♥लड़ाई भूख से..♥♥

♥♥♥♥लड़ाई भूख से..♥♥♥♥
लड़ाई भूख से लड़ने लगे हैं!
परिंदे शाख़ से उड़ने लगे हैं!

नशे का दौर ऐसा आ गया के,
नए पत्ते भी अब सड़ने लगे हैं!

मेरे दुश्मन हैं जाने दोस्त हैं वो,
जो आंसू आँख में जड़ने लगे हैं!

हैं हरकत नौजवानों की घिनोनी,
बड़े भी शर्म से गड़ने लगे हैं!

जो बिगड़ा वक़्त तो टूटे सितारे,
वो राजा पैर तक पड़ने लगे हैं!

वफ़ा का खाद पानी न मिला तो,
ख़ुशी के फूल सब झड़ने लगे हैं!

नज़र में "देव" क्यों हैं सरफिरे वो,
जो सच की बात पे अड़ने लगे हैं!"

.......चेतन रामकिशन "देव"……  
दिनांक-१७.०५.२०१४